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वास्तु शास्त्र, स्थापत्य-शास्त्र, भवन-निर्माण कला एक परिचय एवं महत्व

Published On : October 24, 2016  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

वास्तु शास्त्र एक परिचय

प्राचीन काल से ही जीव जगत के रहने वसने के स्थान के कारण धरती को वसुधा अर्थात् वसने का स्थान कहा कहा गया। मानव मात्र ही नहीं अपितु नाना विधि जीव जन्तु तरह-तरह के स्थानों को अपने अनुकूल बनाने का अथक प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं। किन्तु इस प्रक्रिया मे मानवीय चेतना व ज्ञान धीरे-धीरे अनुभवों के सहारे प्रखर होता रहा है। जिससे मानव अपने बौद्धिक कुशाग्रता के कारण आज अपने आवासीय परिसर को अधिक सुगम व उपयोगी बनाने में सफल हुआ। यद्यपि भोजन, वस्त्र और आवास प्रत्येक व्यक्ति की बहुत ही महती आवश्यकता है। जिसके बिना उसके जीवन का निर्वाहन होना असम्भव सा है। वैसे पौराणिक कथानक के अनुसार राजा पृथु द्वारा पृथ्वी को समतल करने की प्रक्रिया को अपनाते हुए उसे रहने के अधिक अनुकूल बनाया गया था। खुले आकाश के नीचे गृहस्थ जीवन के सुखों को भोगना असम्भव सा है। आवासीय जरूरतों को पूर्ण करने के उद्देश्य से वास्तु शास्तु का उदय हुआ। वैदिक ग्रथों में ऋग्वेद ऐसा प्रथम ग्रंथ है जिसमें धार्मिक व आवासीय वास्तु की रचना का वर्णन मिलता है। यद्यपि पूर्व वैदिक काल में वास्तु का उपयोग विशेष रूप से यज्ञ वेदियों की रचना व यज्ञशाला के निर्माण आदि में होता रहा है, किन्तु धीरे-धीरे इसका उपयोग देव प्रतिमाओं सहित देवालयों के निर्माण व भवन निर्माण में होने लगा। यद्यपि वास्तु शास्त्र के क्रमिक विकास का क्रम अप्राप्त सा प्रतीत होता है। वैदिक ग्रंथों में वास्तु का अर्थ- भवन निर्माण व भू से है। जिसका अर्थ रहना व निवास स्थान है। अथर्ववेद का उपवेद स्थापत्य ही आगे चलकर वास्तु या शिल्प शास्त्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

भारतीय वास्तु के शीर्षस्थ आचार्यों में विश्वकर्मा व मय के नाम अधिक प्रसिद्ध हुए हैं। जिसके कारण आज हमें वास्तु के क्षेत्र में इन दोनों पद्धतियों के मिश्रण के दर्शन होते हैं। यद्यपि वेद, पुराणों, उपनिषदों सहित रामायण, महाभारत काल सहित अनेक संदर्भ ग्रंथों मे वास्तु के दर्शन विविध उद्देश्यों के भवन के रूप में होते हैं। जैसे यज्ञशाला, गौशाला, छात्रावास, राजमहल मन्दिर आदि। वास्तु पुरूष की उत्पत्ति अन्नत अविनाशी भगवान सदा शिव से हुई मानी जाती है। इसमे अन्धकासुर के साथ उनका युद्ध तथा उस युद्ध में उत्पन्न पसीने से ही वास्तु के उद्भव का क्रम माना जाता है। जिसे हम संसार के विकास का प्रथम क्रम भी कह सकते हैं।

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वास्तु शास्त्र का महत्व

भारतीय वस्तु शास्त्र का जिनता महत्व प्राचीन काल में था उसके कहीं अधिक आज भी मौजूद हैं। आज प्रबुद्ध वर्ग व वास्तु आचार्यो द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के भवनों में वस्तु सिद्धान्तों के प्रयोग पर अधिक जोर दिया जाता है। यद्यपि जिस स्तर का विशुद्ध ज्ञान भवन निर्माताओं को होना चाहिए उसका सतत् आभाव आज भी झलक रहा है। तथा कथित नवाचार्यो (वास्तु शास्त्री) द्वारा आज मात्र वास्तु को दिग् को आधार मानकर आज समाज के लोगों को दिग् भ्रमित करने में भी कोई कसर नही छोड़ी जा रही हैं। विविन्न पत्र-पत्रिकाओं सहित टी0 वी0 के साधनों द्वारा प्रकट हुए ऐसे वास्तु शास्त्री वास्तु के मूलभूत सिद्धान्तों से अनभिज्ञ रहते हैं। जिससे जनसाधारण इसका लाभ नहीं ले पा रहें है। किन्तु सजग व प्रबुद्ध वर्ग के लोग आज भी इसके महत्व को समझते हुए वास्तु के शास्त्रीय ज्ञान का भरपूर उपयोग सम्पूर्ण आवासीय व व्यवसायिक परिसरों में करते हैं। जिससे उन्हें पारिवारिक व व्यवसायिक उन्नति प्राप्त होती है। अर्थात् वास्तुशास्त्र न केवल भवन निर्माण की अनूठी कला है बल्कि आवासीय सहित विभिन्न भवनों स्कूल, कालेजों, कार्यालय, कारखाना सहित मन्दिर के निर्माण के नियमों को भी बताता है। अर्थात् वास्तु कल्याणकारी नगर व राज्य निर्माण तथा भवनों को सुखद, सुन्दर व अनुकूल बनाने तथा वांछित लक्ष्य को दिलाने में अत्यंत उपयोगी शास्त्र है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को इसका लाभ लेना चाहिए। वास्तु का महत्व न केवल भवन निर्माण व उसकी सुन्दरता तथा अनुकूलता से है बल्कि यह पंचतत्त्वों को संतुलित करने की शक्ति रखता है। जिससे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और नकारात्मक ऊर्जा का अंत होता। भवन चाहे कितना ही सुन्दर व टिकाऊ हो किन्तु उसकी सकारात्मक ऊर्जा यदि सही ढंग से उसमें संचरित नही हो पाती तो उसमें वसने वाले प्राणियों को परेशानी आने में समय नही लगता है । अतः वास्तु बहुत ही मत्वपूर्ण विधा है।

वास्तु शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र का सम्बंध

 वास्तु शास्त्र ज्योतिष शास्त्र का ही अंग माना गया है तथा ज्योतिष को वेदांग कहा जाता है। ज्योति को वेदों में नेत्र के नाम से पुकारा जाता है। क्योंकि नेत्र अपने शक्ति के द्वारा अधिक तीव्रता से प्रवाहित होते है। जिससे हमे किसी वस्तु का ज्ञान होता है। हमारे भारतीय ऋषियों के द्वारा वेदों का प्रचार-प्रसार सिर्फ अभीष्ट फल की प्राप्ति हेतु तथा अनिष्ट फलों से बचने हेतु किया गया था। अर्थात् ज्योतिष द्वारा किसी घटना के घटित होने का अनुमान पहले ही लगाया जाता है। इसी प्रकार वास्तु शास्त्र द्वारा वास्तु समग्र शस्त्रीय सिद्धान्तों को अपनाते हुए भवन को टिकाऊ, सुन्दर, उपयोगी बनाने के साथ ही उसके रहने वाले व्यक्ति की सुख-समृद्धि को सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है। अर्थात् व्यक्ति अपने वांछित फलों को कैसे प्राप्त करेगा। ज्योतिष व वास्तु दोनों ही मानव के कल्याण हेतु समर्पित हैं जिससे वास्तु व ज्योतिष शास्त्र का परस्पर संबंध आज भी बना हुआ है।

वास्तु शास्त्र एक विज्ञान

वास्तु शास्त्र एक विज्ञान है। विज्ञान का अर्थ विशुद्ध ज्ञान से है। अर्थात् वास्तु भवन निर्माण का विशुद्ध ज्ञान हमें प्रदान करता है। इतना ही नहीं यह पंच महाभूतों को नियंत्रित करने की अद्भुत शाक्ति रखता है। चाहे वह सूर्य का ताप हो या फिर जल की शीतलता या फिर वायु संचरण हो। वास्तु शास्त्र बड़ी ही वैज्ञानिकता के साथ इन्हें नियंत्रित करता है। भवन में आकाश तत्व की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए ब्रह्म स्थान को खुला रखने तथा दरवाजे, खिड़की सहित वरामदों की ऊॅचाइयां आदि ऐसे नियम हैं जिससे संबंधित भवन में ऊर्जा आदि के नियमन का विज्ञान समाहित है। इसी प्रकार वास्तु शास्त्र मे कई अन्य वैज्ञानिक तथ्य मिलते है, जिसका हम आगे के अपने लेखो मे विस्तृत जानकारी आप सभी सुधि पाठको को देंगे ।

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वास्तु शास्त्र का उपयोग

भारतीय वास्तु शास्त्र का उपयोग विविध प्रकार के भवनों में होता है। चाहे वह झोपड़ी हो, या फिर कच्चे भवन हो या फिर पक्के भवन हो। चाहे वह ग्रामीण स्तर हो या फिर शहरी स्तर हो, प्रत्येक स्थान पर वास्तु का उपयोग बड़े ही सारगर्भित ढंग से किया जाता है। भारतीय वास्तु न केवल घर तक ही सीमित है। बल्कि यह समग्र निर्माण चाहे वह धार्मिक वास्तु मन्दिर, धर्म शाला, हो या फिर आवासीय व व्यावसायिक वास्तु हो प्रत्येक स्थान पर भारतीय वास्तु का उपयोग होता है। चाहे वह कच्चे घर हो या फिर पक्के घर हो। सभी में वास्तु नियमों का प्रयोग किया जाता है। भारतीय वास्तु की उपयोगिता आज भी उतनी ही है। इसी प्रकार मकान, दुकान, होटल, सिनेमा, आंफिस, विद्यालय, विश्व विद्यालय, व्यापारिक औद्योगिक इकाइयों, बहुमंजिला इमारतों, जलाशयों, नलकूपों कुंआ, आदि सहित राजमहल के निर्माण में भी भारतीय वास्तु शास्त्र अति उपयोगी है। वर्तमान भौतिकवादी युग मे वास्तु शास्त्र अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो रहा है, कारण आज मानव जीवन में रोग, तनाव, निराशा, असंतोष व परिवार की उपेक्षा जैसे अवगुणों में निरन्तर वृद्धि हो रही है जो की अत्यंत चिंता का विषय है |

वास्तु सार

भारतीय वास्तु शास्त्र भूमि व भवन में रहने वाले सभी लोगों के लिए उपयोगी व हितकारी है। जिससे लोगों की सुरक्षा के साथ ही उनको आधार भूत सुविधाएं भी प्राप्त होती है। जीवन सुखी व सम्पन्न होता है तथा विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक आपदों से जैसे आंधी, तूफान, अतिविष्टि, ओला, वृष्टि, ताप आदि सहित  रोग, तनाव, निराशा, असंतोष आदि से भी वास्तु शास्त्र युक्त भवन व स्थान रक्षा करता है। यदि उस भवन का वास्तु बढ़िया है, तो जीवन निर्वहन सुगम गति से हो सकेगा। यदि आपके निवास स्थान का वास्तु दूषित हैं, तो नाना प्रकार की परेशानियों का सामना आपको आजीवन करना पड़ता है। आप भी अपने भवन का वास्तु ठीक कराकर सुखी जीवन निर्वाह कर सकते है |

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