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अजा एकादशी व्रत

Published On : July 12, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

अजा एकादशी व्रत एवं महात्म्य

यह व्रत अपने आप में बहुत पुण्यफल प्रदाता एवं जीवन के भंयकर कष्टों से छुटकारा दिलाने की शक्ति रखता है। इस एकादशी के व्रत को भक्त जन बड़े ही श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करते हैं। प्रत्येक माह के कृष्ण तथा शुक्ल पक्ष में कुल मिलाकर दो एकादशियों के व्रत का विधान होता है। प्रत्येक एकादशी का अपना विशेष स्थान एवं महात्म्य होता है। किन्तु एकादशी के व्रत को इतना पुण्यदायक एवं प्रभावशाली माना गया है। कि उसके प्रभाव से व्यक्ति के कई कष्टों एवं पापों से छुटकारा प्राप्त होता है। इसी प्रकार अजा एकादशी का व्रत बड़ा ही पुण्यफल दायक तथा प्रभावशाली होता है। जिसे प्रतिवर्ष भाद्रपद्र के कृष्ण पक्ष की एकादशी में किया जाता है। इस एकादशी के संबंध में ऐसी मान्यता है। कि जिस प्रकार वसंत सभी के लिये सुहानी एवं कल्याणप्रद होती है। तथा उजड़े हुये चमन पुनः सज जाते है। उसी प्रकार यह अजा एकादशी का व्रत भी व्यक्ति के जीवन में बहारों की सौगात को देने वाला होता है। जिससे भक्त श्रद्धालु पुण्य एवं धर्म लाभ के लिये और कष्ट एवं दुःखों से पार पाने के लिये इसका व्रत एवं अनुष्ठान करते है। तथा भगवान विष्णू के निमित्त समर्पित इस व्रत के पालन में तत्पर रहते हैं। जिससे उन्हें जहाँ अपने कष्टों को दूर करने में सफलता प्राप्त होती है। वहीं एकादशी के पुण्य प्रभाव से पितरों का भी उद्धार होता है। इस व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चन्द्र को पुनः राज्य एवं पुत्रादि वैभव प्राप्त हुआ था। जिससे वह अपने जीवन के कठिन काल से उबर पाये थें।

अजा एकादशी व्रत एवं पूजा विधि

अजा एकादशी व्रत में व्रती साधकों को पहले एक दिन यानी दशमी तिथि में ही संयम एवं नियम का पालन करते हुये तामसिक आहारों के सेवन को छोड़ देना चाहिये। तथा एकादशी तिथि मे सूर्योदय से पहले उठकर शौचादि क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वच्छ धुले हुये वस्त्रों को धारण करें। तथा एकादशी यानी भगवान विष्णू एवं माँ लक्ष्मी के पूजन की समस्त पूजन सामाग्री को एकात्रित करके पूजा स्थल में रख लें। और पूजा हेतु उपयुक्त पात्र एवं पुष्प, खाद्य सामाग्री आदि को एकत्रित करके आसान मे बैठकर आत्मशुद्धि की क्रियाओं को सम्पन्न करते हुये। भगवान का ध्यान एवं पूजन करे या फिर किसी ब्रह्मण जो पांडित्य कर्म में निपुण हो से पूजा करवायें। तथा क्षमा प्रार्थना करते हुये उसे श्री हरि विष्णू को अर्पित कर दें।

अजा एकादशी व्रत कथा

एक बार कुन्ती नन्दन युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहने लगे कि भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महात्म्य है। इसके महात्म्य को सुनने की हमारी इच्छा है हे! मधूसूदन कृपा करके इसे हमे बताये तो भगवान ने उन्हें अजा एकादशी के बारे में बातया था। जिसके संदर्भ में महाराजा हरिश्चन्द्र की कहानी प्रचलित है जो अपने सत्य धर्म पर अड़िग थे। तथा अपनी सत्य प्रतिज्ञा के कारण सारा राज्य महर्षि विश्वामित्र को दान में दे दिया। किन्तु दान के बाद दक्षिणा देने हेतु धर्म पत्नी एवं पुत्र सहित स्वयं नीलाम हुये और तथा शमशान में चाण्डाल के यहाँ नौकरी करने लगे इस कृत्य से वह बड़े ही चिंतित एवं परेशान थे। ऐसे में गौतम ऋषि वहाँ जाकर उन्हें इस अजा एकादशी के व्रत के बारे में बताया। जिससे उत्साहित होकर राजा हरिश्चन्द्र ने अजा एकादशी के व्रत का पालन किया और इसके पुण्य प्रभाव से अपने मृत हुये पुत्र को प्राप्त किया तथा पत्नी एवं राज्यादि वैभव पुनः उन्हें प्राप्त हुये जो कठिन परीक्षा में उन्होंने न्यौछावर कर दिया था। इस मास में भगवान विष्णू के साथ माँ लक्ष्मी की पूजा प्रतिष्ठा से लक्ष्मी एवं नारायण प्रसन्न होते हैं। तथा अपने भक्तों के दुःखों को दूर कर धन धान्य से समृद्ध करते हैं।

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