हिन्दी

छिन्नमस्ता जयंती

Published On : April 13, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

छिन्नमस्ता जयंती

हिन्दू धर्म में देवी एवं देवताओं के अवतारों के पीछे अनेकों कथा संवाद जुड़े हुये हैं। जिसमें माँ छिन्नमस्ता के संदर्भों में भी बड़ी ही रोचक कथायें प्राप्त होती है। इनकी जयन्ती यानी इस रूप के अवतरण को प्रतिवर्ष वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि में मनाई जाती है। इस अवसर में श्रद्धालु भक्तों का तांता लगा हुआ रहता है। तथा लोग उनकी पूजा अर्चना बड़े ही हर्षोल्लास के साथ करते हैं। यह प्रमुख दश विद्या देवी की श्रणियों में शामिल है। जिससे इन्हें माता के षष्ठ अवतार के रूपों में जाना एवं पूजा जाता है। माता ने अत्याचारी राक्षसों का संहार किया था। तथा धर्म की स्थापना किया था। माता के इस रूप के संदर्भ में कहा जाता है कि क्षुक्षा से व्याकुल देवियों के आग्रह पर माता ने उनके प्राणों रक्षा के लिये अस्त्र से अपनी गर्दन को अगल कर दिया था। और क्षुधा से क्षुभित देवियों को माता ने मस्तक के छिन्न होने से जो रक्त निकला उसका पान कराया था। जिससे उनकी क्षुधा शांत हुई। इन्हें दश विद्या की प्रसिद्ध देवी माना जाता है। यह दश विद्या के क्रमानुसार षष्ठ स्थान में आती हैं। इनके इस विकराल रूप से अनेक साधक जहा विस्मत हो जाते हैं। वहीं तंत्रादि विद्याओं को सिद्ध करने वाले साधकों के लिये यह माता परम हितसाधक है। तथा उन्हें वांछित फलों को देने वाली हैं। इस धरती में जो भी भक्त सच्ची श्रद्धा के साथ उनकी पूजा अर्चना करता है। तो उसे वांछित फलों की प्राप्ति होती है। देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी इन्हें मानने वाले भक्त इनकी पूजा अर्चना बड़े ही विधान के साथ करते हैं। भगवती के इस रूप के कारण कुछ लोग इन्हें प्रचण्ड चण्डी भी कहते हैं। इस जयन्ती के अवसर पर देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी माता के मन्दिरों को बड़े ही अद्भुत तरीके से सजाया जाता है। जिसमें रंग विरंगे फूलों का प्रयोग किया जाता है। इनकी जयन्ती में माता की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। तथा भण्डारों का आयोजन भी किया जाता है। छिन्नमस्ता जयंती शक्ति की देवी की पूजा का दिन है, जो बलिदान और ऊर्जा का प्रतीक है।

छिन्नमस्ता पूजा विधि

माता छिन्नमस्ता जयंती पर श्रद्धालु भक्तों को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपनी हथेलियों का दर्शन करना चाहिये। तथा धरती माता को प्रमाण करते हुये विस्तर को छोड़ देना चाहिये। और शौचादि एवं स्नानादिक क्रियाओं को करते हुये माता भगवती की पूजन अर्चना हेतु सभी सामाग्री को एकत्रित करके अपने पूजा स्थल में रख देना चाहिये। तथा कलश के लिये जल एवं अन्य पूजा की वस्तुओं को संग्रहित करके पूर्व या फिर उत्तर की तरफ मुंह करके भगवान का स्मरण करते हुये तीन बार आचमन करना चाहिये। और फिर अपने आत्म शुद्धि की क्रिया को करना चाहिये। इसके बाद अपने पूजन एवं व्रत का संकल्प लेना चाहिये। या फिर किसी मन्दिर में जहाँ माँ का अर्चा विग्रह हो वहीं जाकर पूजा अर्चना करें। तथा भक्ति पूर्वक अपने पूजा कर्म को देवी भगवती को अर्पित कर दें। छिन्नमस्ता जयंती पर देवी छिन्नमस्ता की पूजा होती है, वे शक्ति, साहस और ऊर्जा की देवी हैं।

छिन्नमस्ता जयंती एवं उसका महत्व

धर्म ग्रन्थों के अनुसार माता छिन्नमस्ता देवी काली का ही एक रूप है। जो कि दैत्यों के विनाश एवं भक्तों के कल्याण के लिये हुआ था। दैत्यों का युद्ध में संहार करने वाली देवी छिन्नमस्ता ने ऐसा विस्मयकारी रूप धरा जो असम्भव को सम्भव बना दिया तथा क्षुधा से व्याथित देविओं की क्षुक्षा को शांति किया था। इसी प्रकार माता अपने श्रद्धालु भक्तों को वांछित फलों को देने वाली होती हैं। इनकी पूजा अर्चना से जीवन के कठिन से कठिन संकटों से छुटकारा प्राप्त हो जाता है। अतः दुःखों से छुटकारा हेतु माता की जयन्ती में पूजा अर्चना का बड़ा ही महत्व है। जिसमें शत्रु आदि पीड़ाओं से छुटकारा प्राप्त होता है। इस अवसर पर कई स्थानों में भण्डारों का आयोजन किया जाता है। तथा माँ की प्रसन्नता हेतु दुर्गा या सप्तशती एवं माता के स्त्रोत एवं मंत्रों का जाप होता है।

छिन्नमस्ता भगवती की कथा

पौराणिक धर्म ग्रंथों के अनुसार एक समय की बात है। देवी मंदाकिनी गंगा में स्नान कर रही थी। तथी उनकी दो देवियों ने क्षुधा से व्याकुल होकर कराहने लगी और माता से अपने प्राणों की रक्षा की याचना करती है। और कहती हैं। कि हे देवी आप जगत जननी एवं माता कहलाती है। अतःआप हमारी रक्षा करें। क्योंकि अब हम अधिक देर तक प्रतीक्षा नहीं कर सकती हैं। क्योंकि भूखे बच्चे को माता ही तृप्त करती है। उन देवियों की भक्ति पूर्वक इस विनय से प्रसन्न होकर माता ने अस्त्र के द्वारा अपने मस्तक को धड़ से अलग कर दिया तथा उसे अपने बायं हाथ में रख लिया। जिससे माता के धड़ से तीन रक्त की धारायें निकली जिसमें दो धाराओं का पान क्षुधित देवी करती हैं और एक का वह स्वयं पान करती है। जिससे माता के ऐसे पराक्रम को देखकर देव समूह पुष्प वर्षा करने लगे। तथा सभी दिशाओं से माता की जयकार होने लगी। तब से आज तक माता की जयन्ती बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। यद्यपि दुर्गा एवं काली के देश एवं विदेश में अनेक मन्दिर है। जिसमें छिन्नमाता का मन्दिर झारखण्ड मे है। इसकी विशालता एवं भव्यता बड़ी ही मोहक एवं आकर्षक है।

यह भी पढ़ें:
जानकी भगवती जयंती और बगलामुखी जयंती