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हनुमान जयंती

Published On : June 29, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

हनुमान जयंती एक पर्व

यह हमारे पर्व में बेहद महत्वपूर्ण और धर्मनिष्ठ तपो भूमि मे सच्ची भक्ती के अनुपम उदाहरणों में खास है। जो प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष 07 अपै्रल 2020 मंगलवार को यह खास पर्व मनाया जायेगा। मंगलवार को जब हनुमान जयंती का पर्व हो तो वह और भी खास हो जाता है। क्योंकि हनुमान प्रभु का जन्म मंगलवार के दिन ही हुआ था। इसके अतिरिक्त तमिलनाडु व केरल में हनुमान जयंती मार्गशीर्ष की अमावस्या को और उड़ीसा में वैशाख माह की प्रतिपदा तिथि को मनाई जाती है। इस दिन देश ही नहीं बल्कि विदेशों में यह जयंती पर्व बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन पूरे देश में हनुमान जयंती की धूम सी मची हुई होती है। श्रद्धालु भक्त तरह-तरह के अनुष्ठान, व्रत, पूजन एवं हनुमान जी को सिन्दूर चढ़ाते है। स्थान-स्थान में विशाल भण्डारों का आयोजन भी भक्त श्रद्धालुओं की तरफ से किया जाता है। भगवान श्री हनुमान की के प्रिय भोग मिष्ठान, चूरमा, शुद्ध देशी के लड्डू फल, फूल, सुन्गिधत पदार्थों को लोग बड़े ही भक्ति भाव से अर्पित करते है। श्री हनुमान जी की पूजा में प्रयोग होने वाले नाना विधि पदार्थों को शामिल करके तथा उनके मन्दिरों को विशेष रूप से सजाकर इस जयंती को मनाया जाता है।

हनुमान जयंती एवं हनुमान जन्म

शास्त्रों का कथन है कि जब आपके अन्दर दृढ़ इच्छा शक्ति और आत्म आत्मविश्वास हो, तो भगवान को पाने व उनसे मनोवांछित कामनाओं की पूर्ति बड़ी ही सहज हो जाती है। इसी भक्ति के रंग में रंगी हुई माता अंजनी आदि देव महाशिव की आराधना पुत्र प्राप्ति के लिए बारह वर्षों तक निरन्तर कठिन तप करके किया इन वर्षों में उन्होंने सिर्फ वायु का ही सेवन किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें स्वयं अपने ग्यारहवें रूद्रावतार को पुत्र के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया है। जिनका नाम पवनसुत हनुमान जी पड़ा। हनुमान जन्म के बारे सबसे सुप्रद्धि एवं प्रचलित कथा भगवान राम एवं अधर्मी रावण से जुड़ी हुई हैं। शास्त्रों वर्णन आता है कि रावण अपने व परिवार के उद्धार हेतु भवगवान शिव से प्रार्थना की तो भगवान शिव ने राम के हाथों से उद्धार होने का वर दिया। और भगवान शिव ने खुद ही हनुमान के रूप जन्म लिया जिससे रावण के मोक्ष का वरदान सफल हो पाया और हनुमान जी रामभक्त के रूप में अमर हुये हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा में भगवान हनुमान जी का जन्म होने से इसी तिथि को यह हनुमान जयंती का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ भूरे भारत में मनाया जाता है। कई स्थनों में बड़े-बड़े मेलों का भी आयोजन किया जाता है।

हनुमान जयंती में व्रत एवं पूजा

श्री हनुमान जयंती के इस पर्व में व्रत रखने का विधान होता है। ब्रह्म मुहुर्त में सबसे पहले उठकर शौचादि क्रियाओं से शुद्ध होकर धुले हुये या फिर नये वस्त्राभूषण से सुज्जित होकर एक पवित्र आसन में बैठकर पवित्री मंत्र पढ़कर अपने ऊपर जल छिड़के और आचमन करें तथा हाथ में जल लेकर भगवान हनुमान जी का ध्यान करते हुये व्रत का संकल्प लें। इसके पश्चात् किसी हनुमान मंदिर में जाकर या फिर किसी ब्रह्ममण को जो कि पूजा पाठ के ज्ञाता हो, को बुलाकार विधि पूर्वक उनसे भगवान हनुमान की पूजा अर्चना करवायें और अपनी मनोकांमना रखें। इस प्रकार अपने व घर परिवार के सदस्यों की कुशलता की कामना करते हुये भगवान हनुमान जी की पूजा उनके जन्म जयंती के अवसर पर करें। जिससे भगवान हनुमान जी प्रसन्न होकर भक्तों को वांछितफल देते हैं।

हनुमान जी एवं राम जी मुलाकात

एक बार मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम नर लीला करते हुये भगवती सीता माँ को ढूढ़ते हुये किष्किन्धा पर्वत पर जा पहुंचे जहाँ हनुमान जी सहित एक विशाल वानरों की सेना से भगवान राम की मुलाकात हुई। यहीं से श्रीहनुमान महापुभ ने रामप्रभु को अपने स्वामी के रूप में अंगीकार किया। तथा राम जी के साथ चलने और उन्हें धर्म युद्ध में साथ देने के लिये पूरे दल बल के साथ भगवान राम को समर्पित हो गये। तथा राम के आज्ञा से अधर्मी रावण व उसकी सेना को भगवान राम के हाथों मोक्ष व सद्गति के लिये लंका को विध्वंस कर दिया। इसमें गोस्वामी तुलसी दास लिखते हैं कि हनुमान जी कहते है कि- रामकाज कीन्हें बिन मोहि कहाँ विश्राम। तभी से निर्मल भक्ति के द्वारा अपने हृदय में श्रीराम जी को बसाये हुये हैं। जिस स्थान में श्रीराम व माँ जानकी का कीर्तन भजन होता है। वहां सदैव हनुमान जी भक्तों के संकट दूर करने के लिये पहुंच जाते हैं।

हनुमान जी का हनुमान नाम कैसे हुआ

संकट मोचन हनुमान महाप्रभ दिव्य तेजस्वी सुमेरू पर्वत पर राज्य करने वाले पिता केशरी एवं तपोनिष्ट, धर्मशीला माता अंजनी को बालक्रीड़ाओं से अभिभूत करते हुये एक दिन घर में शयन के पश्चात् जागे तो इन्हें घर में कोई नहीं दिखा किन्तु पूर्व दिशा में लाल रंग के उगते हुये सूर्य को देखकर उसे फल समझ करके खाने के लिये उड़ चले। किन्तु बालक हनुमान की यह विस्मृत करने वाली घटना को जब देवराज इन्द्र ने देखा तो वज्र से भगवान हनुमान जी पर प्रहार कर दिया। परिणामतः उनकी हनु नामक हड्डी टूट गयी जिससे इनका नाम हनुमान सम्पूर्ण जगत में और प्रसिद्ध हो गया। भगवान हनुमान ने क्रोधित होकर वायु का संचरण सम्पूर्ण त्रिलोकी में अवरूद्ध कर दिया जिससे सभी के प्राणों में संकट आ गया। ऐसे में देव समूहों नें हनुमान जी से प्रार्थना की जिससे प्रसन्न होकर हनुमान जी ने पुनः वायु को संचारित किया और ब्रह्मादि देवों ने बालक हनुमान जी को नाना प्रकार की शक्ति व वज्र सा बलशाली शरीर आदि के कई परम कल्याणकारी वरदान प्रदान किये। इसके अतिरिक्त संकटमोचन, अंजनी के लाल, बजरंगबली, पवनसुत, भी इनके सुप्रसिद्ध नाम है।

हनुमान जंयती एवं सिंदूर चढ़ाने का महत्व

नाना प्रकार की बाधाओं व परेशानियों से घिरे लागों के लिये भगवान हनुमान जी ही उबारने वाले हैं, चाहें वह भूत-पे्रत जनित बाधा हो या फिर शारीरिक रोग हो या फिर दरिद्रता हो या फिर अज्ञानता हो या फिर ग्रह जनित बाधायें हो वह सब हनुमान जी की कृपा से दूर हो जाते हैं। यह जीवन नाना प्रकार की बाधाओं से बिंधा हुआ सा प्रतीत होता है। अतः बाधाओं से बचने वा मनोवांछित फल हेतु मंगलवार के दिन या फिर शनिवार के दिन और हनुमान जयंती के दिन पूरे भक्ति भाव से भगवान हनुमान जी को सिंदूर गाय के शुद्ध घी से चढ़ाना चाहिये। हनुमान जी को जनेउ मीठा पान, शुद्ध चांदी का वर्क जो कि शुद्धता से निर्मित हो, लाल कपड़े आदि विधि पूर्वक अर्पित करना चाहिये। इस सिंदूर चढ़ाने की प्रक्रिया को चोला चढ़ाना भी कहा जाता है। यानी जिस रौनकता से भगवान को आप सजायेगें वही रौनकता आपको जीवन में प्राप्त होगी। इसमें कोई संशय नहीं हैं। हनुमान जी के सिंदूर के विषय में बड़ा ही रोचक प्रसंग प्राप्त होता है। कि वह अपने प्रभु श्रीराम की लंबी आयु के निमित्त अपने पूरे शरीर में सिंदूर लगा लिया था। तभी से वह सिंदूर लगाने से बड़े प्रसन्न होते हैं।

हनुमान जयंती में सुन्दरकाण्डः

इस पर्व में श्रद्धा भक्ति के द्वारा यदि कोई सुन्दरकाण्ड, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बाहुक आदि का पाठ विधि पूर्वक करता एवं करवाता है तो उसे वांछित फल प्राप्त होते हैं। तथा सभी प्रकार कष्ट मिट जाते तथा सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती हैं। तथा कष्टों को दूर करने के लिये इस पर्व में सुन्दर काण्ड का पाठ जिस प्रकार नाम है, उसी प्रकार सुन्दर भी है। इसमें कोई संशय नहीं है।

हनुमान जयंती का महत्वः

यह पर्व अपने आप में बड़ा ही खास होता है। इसमें जहाँ भगवान हनुमान जी के मन्दिरों में दर्शन हेतु तांता लगा रहता है। वहीं हनुमान जयंती के अवसर पर बड़े-बड़े भण्डारों का आयोजन होता है। जिससे में श्रद्धालु भक्तों के द्वारा प्रसाद वितरण एवं ग्रहण किया जाता है। इसके अतिरिक्त गरीब लोगों में प्रसाद का वितरण आदि कल्याणकारी कार्य होते है। तथा हनुमान जी की मूर्ति के सामने शुद्ध होकर दीप प्रज्वलित करके दक्षिण मुखी हनुमान की प्रतिमा हो तो ध्यान मंत्र जाप और दान का और भी महत्व बढ़ जाता है। इस जयंती के शुभ अवसर पर सभी मन्दिरों में श्रीराम चरित्र मानस का पाठ एवं सुन्दर काण्ड का पाठ भी किया जाता है। भगवान हनुमान जी मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम के परम भक्त है। अतः इस मौके पर उनका स्मरण भी परम कल्याणकारी होता है। इस पर्व में भक्त पूरे दिन व्रत एवं उपवास करते हुये विशेष नियम व संयम का पालन करते हैं। इस अवसर पर हनुमान जी की विशेष पूजा अर्चना भी की जाती है। तथा सामूहिक कल्याण की कामना भी की जाती है। हनुमान जी अष्टसिद्धि और नवनिधि के दाता है। अर्थात् इच्छित वर को देने वाले हैं। इस दिन नियम संयम के पालन का बहुत ही महत्व है। अतः मांस मंदिरा आदि का त्याग करके तथा नमकीन पदार्थों को त्यागकर संयमित होकर ध्यान लगाकर हनुमान जी की पूजा करें। हनुमान की पूजा में नियम संयम और ब्रह्मचर्य का अधिक महत्व होता है। क्योंकि वह ब्रह्मचारी हैं। अतः स्त्रियों को उनकी मूर्ति को स्पर्श नहीं करना चाहियें। जो सत्य एवं संयम की आकांक्षी है और सुख सौभाग्य को चाहती हैं। वह दूर से ही उन्हें प्रणाम करें।

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