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श्रीकाल भैरवाष्टमी व्रत

Published On : March 25, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

श्रीकाल भैरवाष्टमी व्रत एवं उसका महत्व

यह व्रत भगवान श्रीकाल भैरव की कृपा प्रसाद पाने के लिये किया जाता है। जिसके प्रभाव से व्रती साधक को बड़े से बड़े संकटों से छुटकारा प्राप्त होता है। तथा साथ ही उसके ज्ञात एवं अज्ञात पापों का शमन भी हो जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान काल भैरव को अष्टमी तिथि अत्यंत प्रिय होती है। अतः जो भी साधक इस व्रत मे भगवान काल भैरव की पूजा अर्चना करते है। उन्हें भगवान काल भैरव मनोवांछित फलों को प्रदान करते हैं। भगवान काल भैरव की पूजा का बड़ा ही महत्व है। जिसके प्रभाव से मनुष्य के सभी रोग एवं दारिद्र छूट जाते हैं। तथा शत्रु एवं आपसी घर आदि के झगड़ों में भी शांति प्राप्ति होती है। काल भैरव भगवान को कालों का भी महाकाल कहा जाता है। धर्म ग्रन्थों के अनुसार भगवान काल भैरव आदि देव महादेव के ही अवतार एवं रूप माने जाते हैं। क्योंकि ऐसे प्रसंग कई स्थानों में पाप्त होते है। चाहे वह देवी भागवत हो या शिव एवं अन्य पुराणों में शिव और उनके अवतारों की तमाम कथायें प्रचलित हैं। राक्षसों के अत्याचार से जब धरती में साधू एवं सज्जन त्राहिमाम करने लगते हैं। और ऋतुओं के संचालन का क्रम बिड़ता है। तो भगवान शिव को भी काल भैरवरूप में प्रकट  होना पड़ता है। यह व्रत रोग, भय, भूत, पे्रत, पिशाच, बीमारी, शत्रु, ऋण आदि कई तरह की बाधाओं से व्यक्ति की रक्षा करता है। अतः भक्ति युक्त चित्त से व्यक्ति को भगवान काल भैरव की पूजा अर्चना करना चाहिये। यह अपने भक्त की सभी दिशाओं से रक्षा भी करते है, किसी कामना एवं खास उद्देश्य के लिये या फिर भक्ति में युक्त होकर इनकी पूजा रात्रि में विशेष रूप से की जाती है मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह व्रत एवं पूजा करने का विधान होता है। काल भैरव भगवान का प्रसिद्ध स्थान उज्जैन एवं काशी है। जिनके दर्शन एवं पूजन का चत्मकारिक लाभ प्राप्त होता है।

श्रीकाल भैरवाष्टमी व्रत एवं पूजा विधि

इस व्रत की तैयारी सप्तमी तिथि में ही कर लेनी चाहिये, शुद्धता एवं पवित्रता का पूरा ध्यान देना चाहिये। तथा व्रत वाले दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शौचादि स्नानादि क्रियाओं करने के बाद समस्त पूजन की सामाग्री को एकत्रित करके पूरी श्रद्धा भक्ति से भगवान काल भैरव की पूजा अर्चना चाहिये। तथा उसे पूजा स्थल में एकत्रित करके रख लें और आसन में पूर्व या फिर उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके आसन में बैठै और भगवान का स्मरण करते हुये आचम करें और आत्मशुद्धि की क्रिया को भी सम्पन्न करें। तथा धूप एवं दीप जलायें तथा मांगलिक श्लोकों का स्मरण करते हुये। अपने पूजा एवं व्रत का सकाम संकल्प लें। यदि आप निष्काम पूजा एवं व्रत करना चाह रहे है। तो उसका भी संकल्प लें। और षोड़शोपचार विधि से भगवान काल भैरव की पूजा अर्चना करे या फिर किसी कर्मकाण्ड में निपुण ब्राह्मण से करवायें। यदि हवन करना चाहे तो और भी अच्छा है। इसके पश्चात् आरती करें। और पूजा एवं व्रत किसी भी भूल एवं कम तथा आधिक्य आदि दोषों के लिये क्षमा प्रार्थना करें। भगवान काल भैरव के साथ भगवती दुर्गा की पूजा अर्चना करने का विधान होता है। तथा शिव एवं पार्वती की पूजा अर्चना का भी विधान होता है। इनकी पूजा में काले उड़द एवं सरसों का तेल, तिल आदि का बड़ा ही महत्व होता है। भगवान काल भैरव की प्रसन्नता हेतु काले कुत्ते को शुद्धता पूर्वक निर्मित किया गया भोजन एवं दूध पिलायें यदि काला कुत्ता न मिले तो जो मिले उसी को भोजन करायें। जिससे भगवान काल भैरव प्रसन्न होते हैं। और व्रती के मन की मुराद को पूरी करते हैं।

काल भैरवाष्टमी व्रत एवं कथा

भगवान श्रीकाल भैरव के संबंध में पौराणिक कथा है कि जब राक्षस समूह वरदान की शक्तियों से चूर होकर यह भूलने लगे कि आखिर वरदान देने वाला ईश्वर ही है। और सभी शक्तियां उसी के अधीन है। ऐसे झूठे अहंकार मे डूबकर अंधकासुर नाम के दैत्य ने देवताओं को जीत लेने और और त्रिलोकी में अपना साम्राज्य स्थापित करने की कुत्सित कोशिश की थी। तथा वह सभी मर्यादाओं को लांघते हुये आदि देव महादेव से युद्ध करने लगा ऐसे दुष्ट एवं अहंकारी के संहार हेतु भगवान ने काल भैरव को अपने अंश से उत्पन्न किया जिससे भगवान काल भैरव ने उस अत्याचारी का संहार कर दिया। आदि कथायें काल भैरवाष्टमी के संबंध में प्रचलित है।

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