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माँ स्कन्दमाता – नवदुर्गा की पांचवी शक्ति

Published On : April 2, 2017  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

पंचम देवी स्कन्दमाता की उत्पत्ति

सम्पूर्ण जगत की भलाई व देवताओं के कल्याण हेतु माँ दुर्गा भगवती नव रात्रि में नव रूपों अर्थात् प्रतिमाओं में प्रकट हुई। जिसमें स्कन्दमाता की प्रतिमा की उत्पत्ति नवरात्रि के ठीक पांचवे दिन भक्त जनों के हित के लिए होती है। वेद पुराणों में देवी देवताओं को न केवल माता-पिता की संज्ञा प्राप्त है, बल्कि वह भक्त वत्सल भी कहलाते है। अर्थात् वह संसार के प्राणियों के लालन-पालन हेतु उसी प्रकार सक्रिय रहते हैं। जैसे कोई माता-पिता अपनी स्वतः उत्पन्न किए गए संतान के प्रति सदैव सक्रिय रहता है। और उसे हर सम्भव प्रयास के द्वारा सुखद जीवन देने व उसके रोग-पीड़ाओं को दूर करने हेतु सक्रिय रहता है। यदि संतान को ज्वर है, पीड़ा है, कोई बीमारी हो गई है, तो उसे तत्काल दूर करने की प्रवृत्ति प्रत्येक अभिभावकों में देखी जाती है। चाहे वह संतान भले ही उनसे द्वेष करे, रूप, यौवन, पद,  प्रतिष्ठा को पाकर उन्हें भूलने लगे और जब उन्हे आश्रय की जरूर हो तब वह किनारा कर लें। किन्तु अंतिम दम तक माता-पिता उसके प्रति अपने वात्सल को नहीं भूलते हैं। इसी प्रकार माँ की यह प्रतिमा जिन्हें स्कन्द माता कहते है भक्तों पर वात्सल्य को बरसाने हेतु तत्पर रहती हैं। उसके दुःखों को भगाने का यथा प्रयास करती हैं। यदि व्यक्ति भक्ति से इनके प्रति समर्पित हो जाए तो तत्काल फल को देने वाली होती हैं। छान्दोग्यश्रृति के अनुसार भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुए सनत्कुमार का नाम स्कन्द है। उनकी माता होने से वे स्कन्दमाता कहलाती है। यह देव सेना के सेनापति भगवान स्कन्द की माता है। इन्होंने दायीं तरफ की नीचेवाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद लिया हुआ है। यह पद्म, पुष्प, वरमुद्रा से युक्त हैं इनका वाहन सिंह है जो पराक्रम वीरता का प्रतीक है। यह माता भक्तों को अभीष्ट फल देने वाली हैं।

स्कन्दमाता की पूजा का विधान

श्री माँ दुर्गा के इस पंचम विग्रह को स्कन्दमाता के नाम से जाना जाता है। इनकी पूजा अर्चना नवरात्रि के पांचवे दिन में होती है। स्कन्द माता की पूजा करने से भक्तों को अभीष्ट फल तो प्राप्त होता ही है। साथ ही माता के इस विग्रह की अर्चना से दाम्पत्य जीवन के आंगन में वात्सल्य की प्राप्ति होती है। अर्थात् संतान की कामना को पूर्ण करने वाली होती हैं। व्यक्ति की बुद्धि निर्मल व चित्त प्रसन्न होता है। साथ ही घर पारिवार की जिम्मेदारियों को निभाने की शक्ति प्राप्त होती है। अर्थात् भक्तों को बड़े विश्वास के साथ स्थापित देवी-देवताओं की पूजा करते हुए माता की पूजा शुद्ध जल, तीर्थ के जल, गंधाक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य सहित सम्पूर्ण पूजन की सामाग्री एकत्रित करके नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्धता पूर्वक करना चाहिए।

माँ स्कन्दमाता की कथा

स्कन्दमाता भक्तों के कल्याण हेतु अति तेजस्वी रूप में दिखाई देती है। जिनका दर्शन अति कल्याण प्रद है जो धन, धान्य व संतान को देने वाला है। यद्यपि माता के चरित्र व कथानक का बड़ा ही सुन्दर वर्णन दुर्गासप्तशती में मिलता है। यह माता सभी प्राणियों की पीड़ा को हरने वाली है। सब मे व्याप्त रहने वाली है। इनकी कृपा से सम्पूर्ण अभीष्ट वस्तुओं की प्राप्ति होती है। माँ ही संसार को उत्पन्न करने वाली उन पर वात्सल्य वरसाने वाली है। चाहे कितनी ही कठिन स्थिति हो पर यह संसार का कल्याण करना नही भूलती है। अर्थात् आप ही सदा अभय प्रदान करने वाली है, आप जिन पर प्रसन्न रहती है, वे ही देश मे सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं। देवी आपकी कृपा से ही पुण्यात्मा पुरूष प्रतिदिन अत्यन्त श्रद्धापूर्वक सदा सब प्रकार के धर्मानुकूल कर्म करता है और स्वर्ग लोग मे जाता है, इसलिए आप तीनों लोकों में निश्यच ही मनोवांछित फल देने वाली है। माँ दुर्गे आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरूषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती है। दुःख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि। आपके सिवा दूसरी कौन हैं, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द रहता हो।

स्कन्दमाता के मंत्र

माँ स्कंध माता के संदर्भं में विविध मंत्र व स्त्रोतो का वर्णन है। जो अति कल्याण प्रद व भक्तों के दुखों को दूर करने वाले तथा मनवांछित फलों को देने वाले हैं। कुछ उपयोगी मंत्र जिनका स्मरण करने से व्यक्ति को वांछित फल की प्राप्ति होती है। यहाँ माँ स्कन्दमाता के आराधना के मंत्रों को दिया जा रहा है।

दुर्गायै दुर्गपारायै सारायै सर्वकारिण्यै।  ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रायै सततं नमः । । 

या देवी  सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः । । 

स्कन्दमाता महात्म्य

स्कंध माता के महात्म्य को दुर्गा सप्तशती में कई स्थानों पर वर्णित किया गया है। माँ अपने भक्तों जनों पर अद्भुत कृपा दुष्टि बरसाने वाली हैं। अपने भक्तों के प्रति इनका वात्सल्य विशेष रूप से प्रभावी रहता है तथा जो भक्ति से विनम्र पुरूषों द्वारा स्मरण की जाने पर तत्काल ही सम्पूर्ण विपत्तियों का नाश कर देती है। अर्थात् यह देवी सभी प्रकार से मातृत्व की रक्षा करके दुष्टों का संहार करती हैं तथा भक्तों का कल्याण करती हैं।

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