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माधवाचार्य जी जयंती

Published On : May 2, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

माधवाचार्य जी जयंती

हिन्दू धर्म के भक्ति मार्गी शाखा को और पुष्ट एवं बलिष्ठ करने वाले तथा आदर्श एवं महान दार्शनिक जो आज भी अपने महान विचारों एवं सुधारों के कारण बडे ही सम्मान के साथ प्रतिवर्ष भारत एवं विश्व के देशों में श्रद्धा पूर्वक स्मरण किये जाते हैं। ऐसे महापुरूष का जन्म इस भारत भूमि में 1238 ई. उड्डप्पी स्थान के पास स्थित गांव पाजक में दक्षिण कन्नड़ जिले में हुआ था। यह अपने समय के महान दार्शनिक एवं सुधारों को गति देने वाले अग्रणी महापुरूषों में सुमार है। इन्होंने ईश्वर एवं आत्मा के भेद को समझाया था। इन्हें पूर्णप्रज्ञ एवं आनन्दतीर्थ के नामों से भी ख्याति प्राप्ति थी। ईश्वर भक्ति एवं उसके तत्त्व के सार भूत सिद्वान्तों को बाखूब समझया था। यह द्वैवतवाद के प्रबल समर्थन एवं विचारक थे। धर्म शास्त्रों के अनुसार माधवाचार्य कोई साधारण पुरूषों में नहीं थे। उनका अवतरण इस धरती पर वायु देवता के अंशावतारों में शामिल है। जैसे हनुमान जी भगवान एवं महाबली भीम जो कि महाभारत के समय के महान युद्धाओं में सुमार थे। उसी प्रकार इन्हें यानी माधवाचार्य जी को भी वायु देता का अवतार माना जाता है। जिन्होंने धर्म एवं ज्ञान के क्षेत्रों को विस्तार देेने एवं समाज के सुधार केे कामों को अंजाम तक पहुंचाने में लगे रहे थे। यह  सत्य एंव ईश्वर की खोज एवं उससे आत्म साक्षात्कार करने के लिये बडे़ ही जज्ञासु थे। अपने बचपन से ही अत्यंत प्रखर बुद्धिवाले तथा संस्कार युक्त थे। जिससे यह अपने बालपन से ही वेद एवं शास्त्रों के प्रकाण्ड विद्वानों की श्रेणी में शामिल हुये थे। तथा यह पहुंचे हुये संन्यासी थे। ईश्वर की खोज में इन्होंने सन्यास धर्म को अपनाया था। तथा योग एवं ध्यान के पथ पर अपना अधिकांश समय ईश्वर के स्मरण में व्यातीत किया था। यह अपने शिष्यओं एवं साधकों को  द्वैतवाद एवं धर्म तथा ईश्वर की शिक्षा दी थी। श्री हरि विष्णू के परम भक्त एवं भगवान विष्णू को ही सर्वस्व एवं सर्वज्ञ मानते थे। भगवान की चतुर्भुजी मूर्ति के अंकरणों जैसे शंख, चक्र, गदा, एवं पद्म की वेशभूषा एवं श्रृंगार को वैष्णवी मत को प्रचारित एवं प्रसारित करने के लिये उसे अपने शरीरिक वेशभूषा में सजाते एवं संवारते थे। जो कालान्तर में वैष्णवी मत एवं परम्परा में प्रचारित हुई और उसे एक प्रथा का रूप मिल सका था। जिससे वैष्णवी मतावलम्बियों ने उसका अनुसरण किया था। जिससे देश एवं उसके अनेक हिस्सों में इनके अनुयायिओं की संख्या में इजाफा हुआ था। जिससे आज भी माधवाचार्य जयंती के अवसर पर अनेक स्थानों में उत्सव एवं भण्डारों का आयोजन किया जाता है।

माधवाचार्य एवं समाज सुधार

इन्होंने हिन्दू समाज एवं यज्ञ में प्रचलित बेजुवान पशुओं की बलि पर रोक लगाने तथा उसे समाप्त करने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। समाज में व्याप्त इस प्रथा को उन्होंने कुरीति एवं अपराध की संज्ञा दी थी। तथा धर्म शास्त्रों के प्रमाण आदि देकर उन्हें बंद करवा था। इससे इस प्रथा का अंत हो सका। जीव हिंसा को रोकने और अहिंसा के मार्ग को अपनाने पर उन्होंने भरपूर समर्थन किया था। जिससे यज्ञ में बलि वदी में पशु बलि एवं हिंसा में रोक लग सकी। सत्य एवं धर्म को प्रचारित करने तथा आत्म साक्षात्कार तथा ईश्वर भक्ति को प्रचारित करते हुये समाज को आत्म चिंतन की शुद्ध दशा एवं दिशा दी थी।

मधवाचार्य एवं अन्य तथ्य

इन्होंने जहाॅ श्री हरि विष्णू की भक्ति को महत्व दिया था। वहीं धर्म के प्रचार को भी अत्यंत महत्व दिया था। और अनेकों कृतियों को सृजित किया था। ब्रह्मसूत्र जो कि द्वैत दर्शन के अन्तर्गत आता है उसमें भाष्य लिखा था। तथा वेदांात के व्याख्यान व्यख्यानों को पुष्ट करते हुये उन पर अनुव्याख्यान भी लिखा था। इसी प्रकार गीता एवं द्वापर युगीन महाभारत जो कि भगवान श्री कृष्ण से संबंधित है। को आधार मानते हुये उनमें अनेकों टीकायें लिखी थी। इसी प्रकार चतुर्वेदो के क्रम में ऋग्वेद में भी टीका लिखी थाी। इस प्रकार धार्मिक ग्रन्थों एवं ईश्वर को लक्ष्य करते हुये माधवाचार्य द्वारा अनेकों रचनाओं को लिखा गया था। इनके जीवन के संबंध में नारायण पंडिताचार्य की मणिमंजरी में उल्लेख प्राप्त होता है। तथा इन्होंने को ग्रन्थ एवं धर्म कार्यो को किया था उसका इसमें बाखूब वर्णन प्राप्त होता है। हालांकि माधवाचार्य एवं रामानुजाचार्य के वैष्णवमत में परस्पर कुछ मतभेद प्राप्त होते है। जिससे यह प्रतीत होता है। यह भगवान विष्णू के परम भक्त होते हुये भी अपने कुछ विचारों में विभिन्नता रखते हैं। हालांकि माधवाचार्य जी जीवन के संबंध में अनेकों लोगों ने कई अनुभूत तथ्यों को प्रकट किया था। इन्होंने ही उड्पी के भगवान श्रीकृष्ण के मठ एवं मन्दिर का निर्माण करवाया था। जो अति भब्य एवं शानदार निर्माण की कला से निर्मित है। माध्वाचार्य ने पंच भेद को ईश्वर एवं आत्मा पदार्थ एवं परमात्मा, जीव एवं पदार्थ प्रकृति एवं सृष्टि एवं ब्रह्म में भेद को भी स्पष्ट किया था। इस प्रकार ईश्वर एवं जीव के मध्य अनेकों सारभूत तत्वों को माध्वाचार्य ने बताया था। अपनी उम्र के 79 वर्ष में 1317 ई में माध्वाचार्य ने ब्रह्म तत्व का वरण कर लिया था। किन्तु आज भी वह श्रद्धा के साथ स्मरणीय है।    

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