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नृसिंह जयंती

Published On : April 15, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

नृसिंह जयंती एवं उसका महत्व

भगवान नृसिंह का अवतार धर्म की रक्षा एवं अधर्म के विनाश के लिये हुआ था। क्योंकि अधर्म एवं अनीत के बढ़ते बवन्डर को मिटाने की शक्ति सिर्फ भगवान विष्णू एवं उनके अवतरों में समाहित है। दया निधि एवं कृपा सिंधू कहे जाने भगवान अपने भक्तों की सभी प्रकार से रक्षा करते हैं। चाहे वह जहाँ हो जिस भी स्थिति एवं परिस्थिति में हो वह सच्चे के भक्तों की रक्षा के लिये अनेकों रूपों एवं अवतारों को धारण करने वाले तथा उनके दुःखों एवं संकटों को हटाने वाले होते हैं। जिनकी कृपा से व्यक्ति के समूचे संकटों का नाश हो जाता है। भगवान नृसिंह जयंती का यह पर्व इसकी धर्म की रक्षा के उत्सव के रूप में प्रतिवर्ष भारत में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। यह भारत ही नहीं बल्कि विश्व के समूचे देशों में जहाँ भी भगवान विष्णू के भक्त हैं। वहा बड़े ही धूम धाम से इस जयंती को मनाया जाता है। यह वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि में पूरे जोश एवं उल्लास के साथ मनाई जाती है। इस अवसर पर प्रसिद्ध मन्दिरों में भण्डारों का आयोजन भी किया जाता है। तथा ऐसे सामूहिक भण्डारों को पूरे जन मानस के लिये रख दिया जाता है। जहा से लोग भोजन प्रसाद को गृहण करते हैं। इनके पूजा अर्चना के प्रभाव से बड़े से बड़े भूत-प्रेत आदि बाधाओं का अंत होता है। क्योंकि इस जन्म जयंती में उन्होंने अपने प्रिय भक्ति पह्लाद को बचाने के लिये नरसिंह अवतार को धारण किया था। और भगवान के परम भक्त प्रह्लाद की रक्षा एवं सुरक्षा सुनिश्चित हो पाई थी। नृसिंह जयंती विष्णु के नृसिंह अवतार का उत्सव है, जो असुर हिरण्यकशिपु के वध के लिए हुआ।

नृसिंह जयंती पूजा विधि

परम पालक एवं भक्त रक्षक भगवान की इस जयंती में शुचिता का पूरा ध्यान देते हुये अपने नित्य शौचादिक एवं स्नानादिक क्रियाओं को सम्पन्न करने के पश्चात् पूजन एवं व्रत की सम्पूर्ण सामाग्री को एकत्रित कर लें। तथा पूर्वा एवं दक्षिणाभिमुख होकर शांत एवं प्रसन्न चित्त होकर बिना किसी क्रोध तथा जल्दी के भक्ति पूर्वक आसन में बैठकर भगवान का स्मरण करते हुये आचमन करे तथा अपने ऊपर पवित्री का मंत्र बोलते हुये जल छिड़क लें। तथा धूप दीप जलाकर कलश की स्थापना एवं भगवान की मूर्मि की स्थापना करें। यदि भगवान नृसिंह का मंदिर हो या फिर विष्णू की प्रतिमा के सम्मुख मांगलिक श्लोंकों का स्मरण करते हुये अपने पूजन एवं व्रत का भक्ति पूर्वक संकल्प लें। तथा विधि विधान से उनकी षोड़शोपचार विधि से पूजा अर्चना करें। 

नृसिंह जयंती एवं कथा

भगवान नृसिंह के संबंध मे वेद पुराणों में अनेकों संदर्भ एवं कथानक प्राप्त होते हैं। जिसमे कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं। भगवान विष्णू का यह अवतार प्रमुख अवतारों की श्रेणी में है। पौराणिक कथा के अनुसार वैदिक काल मे अत्यंत प्रसिद्ध कश्यप नाम के राजा थे। उनकी पत्नी दिति से हरिण्याक्ष तथा हिरण्यकशिपु जैसे दो पुत्रों का जन्म हुआ जो अपने राक्षसी प्रवृत्ति के कारण सम्पूर्ण त्रिलोक में अत्याचारों की सारी हदे पार कर रखी थी। यहा तक कि हरिण्याक्ष ने पूरी पृथ्वी को पाताल लोक में ले गया। जिससे श्री हरि ने वराह रूप धारण करके उसका संहार कर दिया। जिससे उसका भाई हिरण्यकश्प अत्यंत क्रोधित हुआ और वह भगवान से अपने भाई के मृत्यु का बदलना लेने की प्रतिज्ञा कर लिया तथा सभी वैदिक एवं धार्मिक कामों को रोक कर पूरी पृथ्वी में अत्याचार को बढ़ाने लगा। और भगवान के नाम से बुरी तरह चिड़ जाता था। किन्तु श्री हरि विष्णू की महान माया है कि उनका भक्त कोई और नहीं बल्कि पुत्र प्रह्लाद हुआ जिसने अपने बचपन से ही वह भगवान के स्मरण मे ध्यान लगा दिया और हर वक्त उनका ध्यान एवं पूजन करता। स्कूल में पढ़ने के समय भी उसे भगवान के गुणों एवं महिमा का स्मरण होता था। जिससे परेशान उसके शिक्षकों ने उस बालक द्वारा श्री हरि के नाम के स्मरण की बात को बताया। जिससे वह राजा और क्रोध से लाल हो गया तथा अपने पुत्र को अनेकों उपयों से समझा कर हार एवं थक गया किन्तु उसे बिल्कुल भी किसी समझाने से कोई फर्क नहीं पड़ा और वह अपने भगवान की भक्ति में लगा रहा। तथा उसके पिता हिरण्याकश्यप उसे पागल हाथी के सामने डलवा दिया जिससे भगवान की कृपा से उस हांथी ने उसे नहीं मारा तब उसने और अनेकों उपाय उसे मारने के लिये किये किन्तु उसे मारने में वह कहीं भी सफल नहीं हो पा रहा था। जिससे उसे लोह के गर्म खम्भे में बांध कर वह दुष्ट दुख ही मारने लगा और कहने लगा कि बुला कहाँ है तेरा भगवान। क्योंकि उसने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके दिन एवं रात तथा अन्दर एवं बाहर तथा पशु एवं मनुष्य आदि से नहीं मरने का वरदान प्राप्त था। इसलिये भगवान विष्णू ने अत्यंत पराक्रमी रूप को धारण करके जो मनुष्य एवं सिंह का रूप था जिससे उस रूप को भक्तों ने नृसिंह के रूप में जाना एवं पूजा वही भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिये प्रकट हुआ था। तथा पापी हिरण्यकश्प को अपने विशाल नखूनों से फाड़कर मार दिया था। भगवान का यह रूप सभी प्रकार की बाधाओ को समाप्त करने वाला तथा भक्तों को वांछित फलों को देने वाला होता है।

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