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प्रदोष व्रत

Published On : June 30, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

प्रदोष व्रत एवं उसका महात्म्य

यह व्रत अपने आप मे बहुत ही उपयोगी एवं पुण्य प्रदाता है। जिससे कई प्रकार के दुख दर्दों को दूर करके व्यक्ति जीवन में खुशहाली को प्राप्त करता है। इस व्रत के नियमों का जो पालन करता और विधि पूर्वक पूजा आदि करता है उसके रोग व पापों का समूह नष्ट हो जाता है। जिससे शरीर स्वस्थ होता है और मन को वास्तविक शांति मिलती है। इस व्रत के प्रभाव से भगवान आदि देव महादेव की कृपा व प्रसन्नता प्राप्त होती है। प्रदोष व्रत हर महीने कृष्ण और शुक्ल पक्ष की दोनों त्रयोदषी में करने का विधान होता है। सूर्यास्त से दो घटी के समय मे प्रदोषकाल माना जाता है। जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धा, भक्तिभाव से रखते है। उन्हें भूतभावन भगवान शिव धन-धान्य, समृद्धि एवं पुत्र पौत्र आदि सुखों से परिपूर्ण करते है। तथा उनके मनोरथों को सिद्धि करते है। इस व्रत के विषय में मान्यता है। एवं शास्त्रों का कथन है कि कृष्ण पक्ष के सोमवार और षुक्ल पक्ष के शनिवार का प्रदोष अत्यंत पुण्यदायक रहता है। कृष्ण पक्ष के प्रदोष मे प्रदोषव्यापिनी त्रयोदषी को पूजने की मान्यता है। प्रदोषव्रत श्रावण में सोमवार के दिन हो तो उसका फल और भी बढ़ जाता है।

प्रदोष व्रत की पूजा विधि

इस व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति को शौचादि स्नानादि के कामो से फुरसत होकर किसी प्रतिष्ठत शिववालय या मंदिर मे जाकर शास्त्र विधि से पूजा अर्चना करने का विधान होता है। जिसमें भगवान श्रीगणेश, गौरी, शिव, कार्तिकेय, नन्दी, वीरभद्र, कुबेर आदि की पूजा पूरे श्रद्धा के साथ करने का विधान होता है। प्रदोषकाल सूर्यास्त के बाद दो घड़ी तक का समय होता है। इस पूजा एवं व्रत मे आत्मशुद्धि का ध्यान देते हुये सूर्यास्त के समय भगवान शिवमूर्ति की पूजा सुखासन में बैठकर करे, पहले उनका ध्यान करें फिर उन्हें जल, चढ़ायें फिर वस्त्र या धागा फिर चंदन, चावल फूल एवं फल उत्तम किस्म के और बिल्वपत्रादि से शिव एवं शिव परिवार की पूजा करें। यदि देशकाल एवं परिस्थिति वश शिवमूर्ति या शिवमंदिर उपलब्ध नहीं हो तो शुद्ध जगह की मिट्टी के द्वारा पार्थिव लिंग का निर्माण कर उसकी पूजा करें। “महेष्वराय नमः” कहकर अपने हाथ के अंगूठे के जितना पार्थिव लिंग निर्मित करें। नमः शिवाय” जपते हुए दूध से स्नान कराएं, और पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्य चढ़ाये। तथा किसी जाने अनजाने में हुयी भूल की क्षमा प्रार्थना करें। इसके बाद महादेवाय नमः कहकर उनका विसर्जन करें। विर्सजन भी शुद्ध स्थान एवं किसी पवित्र जलाशय में करें।

प्रदोष व्रत की कथा

हमारे धर्म शास्त्रों में इस व्रत के संबध में बड़े ही अद्भुत कथानक प्राप्त होते है। जिसमें कुछ संक्षिप्त इस प्रकार है। एक बार भगवान चन्द्रमा देवता को कोई पीड़ा तथा रोग लगा था। जिससे वह बहुत ही व्यथित एवं दुखित हो रहे थे। तब उन्होंने इसका उपाय किसी पहुंचे हुये गुरू से किया तो उन्होनें भगवान चन्द्रमा को प्रदोष व्रत रखने का विधान बताया था। और उसके पालने से उनकी समस्या समाप्त हो गयी थी। प्रदोष व्रत वर्ष पर्यन्त आता रहता है किन्तु रवि एवं सोम तथा शनि प्रदोश अपने आप बहुत ही महत्वपूर्ण है। एवं शीघ्रफल देने वाले होते है। अतः चन्द्रमा के व्रत के कारण आज भी लोग अपने कामना को सिद्ध करने के लिये प्रदोष करते हैं।

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