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सत्यनारायण व्रत

Published On : July 1, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

सत्यनारायण व्रत एवं महात्म्य

यह व्रत भगवान विष्णू की कृपा प्राप्त करने के लिये किया जाता है। जो प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की पन्द्रराहवी तिथि यानी पूर्णिमा में विशेष रूप से किया जाता है। इसके देवता भगवान विष्णू हैं। जिन्हें सत्यदेव कहा जाता है। पूर्णिमा तिथि में व्रत करने के कारण कई लोग इसे पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं। क्योंकि सभी तिथि, नक्षत्र, वार आदि भगवान की रचना है। इसलिये विद्वानों ने इसे सत्यनारायण के व्रत को किसी भी महीने में किसी भी दिन और कभी भी करने को कहा है। इस संदर्भ में श्री सत्यनारायण की कथा में वर्णन प्राप्त होता है कि अस्मिन् कस्मिन् दिने भक्तयः श्रद्धा भक्ति समन्वितः यानी पूर्णिमा के अतिरिक्त किसी भी दिन श्रद्धा विश्वास पूर्वक भगवान सत्यदेव का पूजन अर्चन कर सकते है तथा कथा को श्रवण कर सकते हैं। गुरूवार और पूर्णिमा तिथि की शुभता के कारण पूर्णिमा में व्रत करने का संदर्भ भी प्राप्त होता है। किन्तु किसी शुभ अवसर पर एवं इच्छानुसार इस व्रत एवं पूजन को कभी भी किया जा सकता है। यह व्रत एवं पूजा मनुष्यों के सभी दुःखों एवं पापों को नष्ट करने वाले एवं शत्रुओं पर विजय श्री देने वाले होते हैं। भक्तों की इच्छा को पूर्ण करने वाले तथा सत्य को धारण करने के कारण ही इस व्रत के देवता का नाम सत्यनारायण है। इनकी इस कथा को सुनने एवं पूजन करने का अनुष्ठान नव वरवधू भी करते है। जिसे प्रथम वधू आगमन भी कहा जाता है। विधि विधान से श्रद्धा पूर्वक भगवान श्रीसत्यनाराण व्रत एवं पूजन तथा कथा सुनने से जीवन में सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है।

सत्यनारायण व्रत की संक्षिप्त पूजन सामग्री

चौकी, स्वर्ण प्रतिमा सत्यदेव की तथा हल्दी, पुष्प, केले के पत्ते एवं फल, कमल का फूल पान व आम के पत्ते, सुपारी, लौंग, इलाइची, धूप, दीप, रूई, देशी गाय का देशी घी, यज्ञोपवीत, वस्त्र, मलयागिरि चंदन, कपूर, रोली, मौली, गंगाजल, पंचामृत दूध, शहद, दही, घी, गुड़ एवं चिनी, फल एवं पंचमेवा आदि प्रसादः के लिये गेंहू का चूर्ण जिसे देशी घी में भूनकर उसमें कुछ गुड़ एवं चिनी को मिलाकर रखें। आदि पूजन की सामाग्री कही गई है। हवन हेतु तिल, जौ चावल तथा अन्य हवनात्मक औषिधियों को शामिल किया गया है।

सत्यनारायण व्रत एवं पूजन विधि

जिस दिन भी आप भगवान सत्यनारायण का व्रत एवं पूजन करने जा रहे हो उससे एक दिन पहले ही नियम एवं संयम का पालन करें। तथा मदिरा एवं तामसिक आहारों जैसे लहसुन,प्याज, मांस आदि तामसिक पदार्थों का त्याग करके व्रत के दूसरे दिन ब्रह्म मुहुर्त में उठकर शौचादि स्नानादि क्रियाओं को सम्पन्न करके सम्पूर्ण व्रत एवं पूजन की सामाग्री को एकत्रित करके। सुख पूर्वक आसन में बैठकर भगवान का स्मरण करते हुये आचमन एवं पवित्री करण करें।  तथा सत्यनारायण की प्रतिमा को किसी चौकी में स्थापित करके उनका मण्डप बनायें।

उन्हें पीले एवं सुगन्धित पुष्पों का आसन देकर बैठायें तथा विधि विधान से पूजन करे या किसी ब्रह्मण जो कि कर्मकाण्ड का ज्ञाता हो से करवायें। तथा ऊँ श्री सत्यदेवाय नमः मंत्रों का मन में जाप करते रहें। तथा अपनी पूजा एवं दान तथा कथा श्रवण को भगवान सत्यदेव में अर्पित कर दें। भगवान सत्यदेव से प्रार्थना करें कि हे प्रभू! मेरे पूजन को स्वीकार करें आपको कोटि-कोटि प्रणाम है। तथा फिर कथा को सपरिवार सहित सुने।

सत्यनारायण व्रत कथा अति संक्षिप्त

भगवान सत्यनारायण व्रत की कथा में मुख्यतः 7 अध्यायों का समावेश मिलता है। किन्तु आज भाग-दौड़ भरी जिन्दगी के कारण और समय का आभाव होने के कारण उसे मात्र पांच अध्ययायों तक ही सीमित कर दिया गया है। जिसमें कथा के प्रमुख अंशों को यहाँ समझने का प्रयास किया जा रहा है। पहला अध्यायः एक समय नैमिषारण्य तीर्थ में शनकादि अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्रीसूत जी से पूछा-हे प्रभु! इस कलियुग मे वेद-विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिलेगी तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ! कोई ऐसा तप कहिए जिससे थोड़े समय में पुण्य हो तथा मनोवांछित फल भी मिले, वह कथा सुनने की हमारी प्रबल इच्छा है। इस प्रकार ऋषियों की बातों को सुनकर सूत जी ने उन्हें इसके पूजा विधान को बताते हैं। दूसरा अध्यायः सूतजी बोले हे ऋषियों! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया है उसका इतिहास कहता हूँ। ध्यान से सुनो! सुन्दर काशीपुरी नगरी में एक अतिनिर्धन ब्राह्मण रहता था। वह भूख और प्यास से बचैन हुआ नित्य ही पृथ्वी पर घूमता था। ब्राह्मणों से पे्रम करने वाले भगवान ने ब्राह्मण को दुःखी देखकर बूढ़े ब्राह्मण का रूप धर उसके पास जा आदर के साथ पूछा हे। विप्र! नित्य दुखी हुआ पृथ्वी पर क्यों घूमता है? हे श्रेष्ठ ब्राह्मण यह सब मुझसे कहो, मैं सुनना चाहता हूँ। तीसरा अघ्यायः सूतजी बोले- हे श्रेष्ठ मुनियो! अब आगे की कथा कहता हूँ सुनो पहले समय में उल्कामुख का एक बुद्धिमान राजा था वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था। प्रतिदिन देव स्थानों मे जाता तथा गरीबों को धन देकर उनके कष्ट को दूर करता था। उसकी पत्नी कमल के समान मुखवाली और सती साध्वी थी। भद्रशीला, नदी के तट पर उन दोनों ने सत्यनारायण देव का व्रत किया। चौथा अध्यायः सूतजी बोले-वैश्य ने मंगलाचार करके यात्रा आरम्भ की और अपने नगर को चला। उनके थोड़ी दूर पहुंचने पर दंडी वेषधारी सत्यनारायण ने उनसे पूछा हे साधू! तेरी नाव में क्या है। अभिमानी वणिक हंसता हुआ बोला हे दण्डी! आप क्यों पूछते हो क्या धन लेने की इच्छा है? मेरी नाव मे तो बेल तथा पत्ते आदि भरे हैं। पांचवा अध्याय: सूतजी बोले हे ऋषियो। मै और भी कथा कहता हूँ सुनो। प्रजा पालन में लीन तुंगध्वज नाम का एक राजा था। उसने भी भगवान का प्रसाद त्याग कर बहुत दुःख पाया। एक समय वन में जाकर के पशुओं को मारकर बड़ के पेड़ के नीचे आया उसने भक्ति भाव से ग्वालों को बांधवों सहित सत्यनारायण का पूजन करते देखा। राजा देखकर अभिमान वश न वहां न गया और न ही नमस्कार किया। जब ग्वालों ने भगवान का प्रसाद उसके सामने रखा तो वह प्रसाद को त्याग कर अपनी सुन्दर नगरी को चला गया। वहां उसने अपना सब कुछ नष्ट पाया। तो वह जान गया कि यह सब कुछ भगवान ने किया है। इस प्रकार सम्पूर्ण कथा को श्रवण करके। भगवान सत्यदेव की आरती करें। जैसे-जय लक्ष्मी रमणा श्री जय लक्ष्मी रमणा, सत्यनारायण स्वामी जन पातक हरणा । आरती करने के बाद भगवान की जय बोले तथा प्रसाद आदि वितरण करके व्रत के विधान को पूरा करते हैं।

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