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वामन जयंती

Published On : May 1, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

वामन जयंती एवं उसका महत्व

हिन्दू धर्म में वामन जयंती उत्सव प्रति वर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को बडे़ ही धूम-धाम एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। क्योंकि भगवान श्री हरि विष्णू ने वामन अवतार को धारण करके असुरराज बलि के घमण्ड को चूर कर दिया था। लोगों में व्याप्त इस असुरराज के भय को भी समाप्त किया था। भगवान का यह अवतार सतयुगी किन्तु मतान्तर से त्रेतायुगी था। भगवान के इस रूप की पूजा यदि स्वर्ण निर्मित प्रतिमा के द्वारा किया जाये तो यह अत्यंत प्रभावशाली पुण्य देने वाली वाली होती है। भगवान इस धरती एवं देवताओं की पीड़ाओं को मिटाने के लिये युगों से अवतारों को धारण करते आ रहे हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार यह कहा जाता है। कि राजा बलि ने यज्ञादि करके बहुत ही प्रभावशाली वरदान प्राप्त किया था। जिससे उसने इन्द्रादि देवताओं को पराजित करके स्वर्ग आदि में अपना राज्य स्थापित कर लिया था। इसी प्रकार वह अपने वर्चस्व को बढ़ाने के लिये वैदिक यज्ञ एवं दान कर रहा था। और उसके इस दान में भी अभिमान की झलक थी। जिससे वह किसी को भी कुछ मांगने के लिये कहता था। इसी प्रसंग में भगवान वामन का अवतार भी जुड़ा हुआ है। जब कोई अभिमानी असुर अपना एकाधिकार कर अत्याचारों को चहुओर बढ़ा देते है। तो भगवान श्री हरि विष्णु देवताओं तथा भक्तजनों की रक्षा हेतु विविध प्रकार के अवतारों को धारण करते हैं। इस संबंध में गोस्वामी तुलसीदास अपने ग्रंथ श्रीरामचरित्र मानस में कहते हैं-जब-जब होई धरम के हानि। बाढ़हि असुर अधम अभिमानी।। तब-तब प्रभु धरि विविध शरीरा। हरहिं कृपा निधि सज्जन पीरा।। अर्थात् जब धर्म की हानि होने लगती है असुरों का अत्याचार धरती पर बढ़ता है, तब भगवान श्री हरि विष्णु विविध अवतारों को धारण करते हैं। भगवान के अवतारों के संदर्भ में इसी प्रकार श्रीमद्भगवत गीता आदि का भी यहीं संदेश है। 

वामन जयंती पर भगवान की पूजा

भगवान वामन जयंती पर शुचिता एवं पवित्रता का पूरा ध्यान देते हुये सूर्योदय से पूर्व विस्तर को छोड़ देना चाहिये। और उनके पूजन की सम्पूर्ण सामाग्री को एकात्रित करके शौचादिक एवं स्नानादि क्रियाओं को सम्पन्न करके भगवान का स्मरण एवं आचमन करे। फिर कलशादि सहित भगवान विष्णू की सोने की प्रतिमा को स्थापति करके यदि स्वर्ण प्रतिमा न हो तो जो आपके पास उपलब्ध हो उसी की पूजा षोड़शोपचार विधि से करना चाहिये। तथा अपने सम्पूर्ण पूजन एवं व्रत को भगवान में अर्पित कर देना चाहिये। और क्षमा प्रार्थना भी करना चाहिये। इस प्रकार भक्ति पूर्वक अपने पूजा कर्म को सम्पन्न करें।      

वामन जयंती की कथा

एक बार की बात है। कि राजा बलि ने अपने वरदान की शक्तियों के कारण इन्द्र लोक में आक्रमण करके वहाँ अपना राज्य स्थापित कर लिया था। जिससे देवराज इन्द्र अपने राज्य के छिन जाने और अपमानित होने के दुख से वह काफी दुखी थे। इन्द्र के इस दुःख से देव माता भी दुखी थी तथा उन्होने श्री हरि की स्तुति की जिससे भगवान विष्णू ने देवमाता को यह वरदान दिया कि दैत्यराज बलि के अत्याचारो से मुक्ति दिलाने के लिये वामन अवतार को धारण करेगे। तथा उसके भय से उन्हे मुक्त करेंगे। समय आने पर भगवान श्री हरि विष्णू ने वामन अवतार को धारण किया जिससे देवता एवं ऋषिगण प्रसन्न हो उठे भगवान वामन के उस रूप की देवता आदि स्तुति करने लगे। भगवान इस स्तुति से प्रसन्न होकर उन्हें जल्द ही राजा बलि की भय से मुक्ति दिलाने के लिये आश्वासन दिया था। इधर राजा बलि स्वर्ग पर सदैव अपना आधिपत्य जमाने के लिये अति विशाल अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ एवं वैदिक रीति के अनुसार यज्ञ में अतिथि एवं ब्राह्मणों के सत्कार का नियम होता है। किन्तु राजा बलि स्वभाव से ही दानवीर एवं अतिथि सेवक था। जब भगवान उस यज्ञशाला में पहुंचे तो वहाँ दिव्य तेज प्रकट होने लगा। जिससे कुछ लोगों को भगवान श्री हरि के आगमन के संकेत हुये किन्तु पूरा विश्वास नहीं हुआ। भगवान के वामन रूप को देखकर राजा बलि ने पूजा स्वागत एवं सत्कार किया। किन्तु इसके बाद वह उनसे कहने लगा कि आपकी जो इच्छा हो आप माँग लें। ब्राह्ण वेशधारी विष्णू बलि के इस कथन पर भी चुप ही रहे, किन्तु पुनः वह अहंकार से कहने लगा नहीं जो कुछ तुम्हारी इच्छा हो दान ले लो मै देने के लिये पूरी तरह से तैयार हूँ। इस पर भगवान ने कहा हे राजन! यदि आपकी इतनी बड़ी इच्छा दान देने की है। तो मुझे मात्र तीन पग भूमि का दान दे दो। जब राजा बलि ने वामन धारी विष्णू से यह बात सुनी तो वह कहने लगा अरे! तीन पग भूमि से क्या होगा और कुछ अधिक और बड़ा मांगो। किन्तु भगवान ने कहा मुझे बस इतना ही चाहिये। तो राजा बलि ने ज्यो ही उसका संकल्प करवाया चाहा त्यों ही उसके गुरू शुक्राचार्य ने उन्हें मना किया किन्तु वह अपनी बात से हटे नहीं और तीन पग भूमि का संकल्प वामन भगवान को दे दिया तथा वामन अवतारी भगवान विष्णू ने एक पग से सम्पूर्ण पृथ्वी और दूसरे पग से स्वर्ग लोक को नाप लिया और तीसरे पग में पूछने लगे कि बताओं इसे कहा रखे तो बलि का मस्तक शर्म से झुक गया और उसने अपने बचनों पर अड़िग रहते हुये तीसरा पग अपने सिर पर रखवा लिया। जिससे भगवान उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे पाताल लोक का राज्य दे दिया और राजा बलि ने भगवान से वरदान माँगा कि हे! प्रभु मै अपने महल जो कि पाताल लोक में है जिस द्वार से भी निकलू वहीं आपके दर्शन करू । भगवान ने एवमस्तु कहा दिया तभी से भगवान को चार माह के लिये पाताल में रहना पड़ता है। आदि कथा है|

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