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कल्कि जयंती

Published On : April 26, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

कल्कि भगवान जयंती एवं उसका महत्व

श्री हरि विष्णू के सभी अवतारों के पीछे इस धरती के अत्याचार एवं पाप को समाप्त करना है। चाहे वह किसी भी युग एवं युगान्तर में उनके अवतार धारण करने की बात हो। सदैव ही धर्म को स्थापित करते हुये अधर्म का नाश करना ही उनका लक्ष्य रहा है। इसी क्रम में अन्य अवतारों की तरह ही भगवान कल्कि का यह अवतार है। जो कलयुग में बढ़ रहे पापों के उद्धार के लिये हुआ था। इस कलयुग में ऐसे लोग जो धर्म एवं सत्य के मार्ग पर अड़िग है। उन्हें अनेकों कठिनायों को न केवल सहना पड़ता है, बल्कि अधर्म एवं अत्याचार तथ अन्याय के कारण उनका जीवन बड़ा कठिन हो जाता है। धर्म एवं यज्ञ कर्मो का सतत् विरोध होने लगता है। तथा सत्य एवं न्याय की बातें धूमिल होने लगती है। धर्मिकता का कहीं लोप सा हो जाता है। भगवान का भजन एवं पूजन तथा व्रत एवं उपवास के आचरण दिनों दिन कमजोर होने लगते हैं। चोर, पापी, लोभी, दुष्ट तथा अधर्मी आदि लोग अपना कारोबार बढ़ाने लगते है। यानी चारों ओर से धर्म एवं सत्य का विरोध होने लगता है। धरती सहित वायुमण्डल प्रदूषित हो जाता है। जिससे प्रकृति की नियमबद्धता अवरूद्ध होने लगती है। ऐसे में देवताओं सहित धरती की प्रार्थना में भगवान विष्णू को अपने अंश को किसी अवतार के रूप में इस धरा में अवतरित करना पड़ता है। जैसे श्री हरि विष्णू ने सतयुग में वामन तथा त्रेतायुग में श्रीराम और द्वापर में श्रीकृष्ण तथा कलियुग में श्री कल्कि के रूप में भगवान विष्णू ने अवतारों को धारण किया था। इसका वर्णन हमारे धर्म पुराणों में प्राप्त होता है। इस बात का उद्घोष भगवान श्रीमद् भागवत गीता में बाखूब करते हैं। जब-जब धरती में धर्म की हानि होती है। तब-तब युग एवं युगान्तरों में धर्म की रक्षा एवं उसे पुनः स्थापित करने के लिये अवतारों को धारण करूगा।

कल्कि भगवान का अवतार

भगवान विष्णू का यह अंतिम एवं दशवां अवतार माना जाता है। इस हेतु कई बार भविष्यवाणियों का उद्घोष किया जाता रहा है। हमारे हिन्दू धर्म में चतुर्युगी व्यवस्था में कलयुग युगों की गणना में चौथा युग है। इस कलियुग में अधर्म एवं पापों के कारण धर्म व सत्य पंगु एवं कमजोर होकर रह जायेगा। ऐसे में विष्णु भगवान कल्कि के रूप में संभल गांव में श्री विष्णुश बा्रह्मण के घर में कल्कि अवतार को धारण करेंगे। तथा धरती में व्याप्त एवं अत्याचारों को नष्ट करके धर्म एवं पुण्य कर्मों की स्थापना करेंगे|

कल्कि भगवान की पूजा एवं व्रत विधि

कल्कि भगवान जयंती पूरे उत्साह एवं भक्ति के साथ जयंती की पूर्व संध्या पर ही सभी तामसिक आहारों को छोड़कर सत्य अहिंसा एवं ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। फिर भगवान के पूजन की सम्पूर्ण सामाग्री को संग्रहित करके। अपने पूजा स्थल में रख लें या फिर किसी मंदिर जहहाँ भगवान कल्लि की प्रतिमा अश्वारूढ़ हो के सम्मुख जाकर उनकी पूरे विधान से पूजा एवं अर्चना करें। यदि षोड़शोपचार विधि से पूजा करें ता वह अत्यंत पुण्यफल देने वाली होती है। इस प्रकार भगवान की विधि पूर्वक पूजा करने के बाद उन्हें प्रणाम करें और प्रदिक्षणा करें। तथा अपने पूजा मे अपनी किसी भी हुई भूल के लिये विनम्र भाव से क्षमा प्रार्थना करें। और अपने पूजा को उन्हें अर्पित करें।   

कल्कि भगवान का विवाह एवं अन्य तथ्य

भगवान कल्कि धर्म की स्थापना हेतु पापियों का संहार करेंगे। कलियुग के अंतिम चरण में अवतार को धारण करने के बाद अनेकों अत्याचारियों का संहार करेंगे। तथा अपना विवाह सिंहल द्वीप जाकर पद्मावती राजकुमारी से करेंगे। तथा कलि के अंतिम चरण में पुनः सतयुग की स्थापना करेंगे। इनका वाहन अश्व है। जिसका नाम देवदत्त है। इसका प्रयोग वह दुष्टों के संहार के लिये करेंगे। भगवान कल्कि तलवार को धारण किये हुये हैं। जो अत्याचारियों एवं पापियों के विनाश के लिये है। क्योंकि भगवान 64 कलाओं को धारण करने वाले हैं। इसे निष्कलंकी अवतार के नाम से भी जाना एवं पूजा जाता है। श्री कल्कि पुराण एवं श्रीमद्भागवत् पुराण में श्री विष्णू के अनेकों अवतारों की कथायें बड़े ही विस्तार से प्राप्त होती है। संसार एवं धर्म की रक्षा के लिये वह भगवान परशुराम को अपने गुरू के रूप में स्वीकार करेंगे। तथा भगवान परशुराम ही उन्हें आदि देव भगवान महादेव की तपस्या के लिये पे्ररित करेंगे। और सम्पूर्ण विश्व के कल्याण तथा धर्म की नींव को पुनः मजबूत करने के लिये वह भगवान महादेव से अति प्रभावशाली दिव्याशस्त्र को प्राप्त करेंगे। तथा उसके द्वारा क्रूर पापियों एवं अत्याचारियों का संहार करेंगे। तथा सतयुग की पुनः स्थापना करेंगे। भगवान कल्कि का मंदिर जो अति प्राचीन है। तथा जिसके संबंध में पुराणों में वर्णन भी प्राप्त होता वह संभल जिले में है जो कि उत्तर प्रदेश में पड़ता है। जहा प्रतिवर्ष कल्कि भगवान जयंती पर बड़े अनुष्ठानों एवं कथा आदि का आयोजन बड़े ही हर्षोल्लास के साथ किया जाता है।

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