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गोस्वामी तुलसी दास जयंती

Published On : April 27, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

गोस्वामी तुलसी दास जयंती

भगवान मर्यादा पुरूषोत्तम रामचन्द्र जी के जीवन के महान धार्मिक ग्रन्थ श्री रामचरित्र मानस को लिखने वाले तथा उसे हिन्दी की सभी विधाओं में सर्वोच्च स्थान दिलाने वाले तुलसीदास जी मानस के हंस है। जिस प्रकार मानसरोवर में हंस होता है। उसी प्रकार रामचरित्र मानस को लिखने वाले तुलसी दास है। जिसके संदर्भ में कहा जाता है। कि वह इस विशाल आकाश में चमकते हुये चन्द्रमा की तरह है। जो घने अंधकार को चीरते हुये सम्पूर्ण धरती में अपनी चाँदनी को विखेरता हैं। तथा बड़ा ही शीतल स्पर्श सम्पूर्ण जीवों को देता है। ऐसे महान कवि शिरोमणि तुलसी दास ने धर्म ग्रन्थों के अनुसार इस धरती को धन्य बनाने के लिये श्रावण शुक्ला सप्तमी में जन्म लिया था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे एवं माता का नाम हुसली था। हालांकि इस महान कवि के जन्म के कुछ वर्षो के बाद उनके पिता एवं माता स्वर्ग को सिधार गये थे। तथा मुनियां नाम की दासी ने उनका पालन पोषण किया था। कहते है कि इनके बचपन से ही मुख में पूरे बत्तीस दाँत निकल चुके थे। जिसे ज्योषि एवं मान्यताओं के अनुसार माता-पिता एवं परिवार के लिये बड़ा ही अशुभ माना जाता है। ऐसे बालक का जीवन पहले बचता ही नहीं है। यदि बच भी गया तो वह सूर्य एवं चन्द्रमा की तरह ही जग विख्यात होता है। अपने जन्म के समय उन्होंने राम-राम का उच्चारण किया था। जिसे सुनकर माता को बड़ा विस्मय हुआ था। गोस्वामी तुलसी दास ने सम्वत् 1532 में उतर प्रदेश चित्रकूट जिले के राजापुर ग्राम में जन्म लिया था। ईश्वर का बोध एवं ज्ञान अर्जित करने के लिये तुलसी दास जी ने अनेको तीर्थों की यात्रायें एवं ईश्वर की पूजा अर्चना की थी। कहते है कि समाज के दवाब में आकर उन्होंने महेवा गांव जो कि इनके गांव से यमुना के ठीक उस पार है। रत्नावली नाम की कन्या से अपना विवाह किया था। तथा एक समय की घटना है कि इनकी धर्म पत्नी ने इन्हें लोकलाज के संबंध में दुत्कार दिया था। तथा यह भी कहा कि इतना पे्रम श्री हरि विष्णू से करते तो शायद जीवन का उद्धार हो जाता। यह बात इनके मन में बैठ गयी और यह सबकुछ त्यागकर अपने आखिरी गनतब्य ईश्वर को खोजने लगे और श्रीरामचरित्र मानस की रचना भी इन्होंने की, श्री हनुमान जी के द्वारा रामचन्द्र जी से इनका साक्षात्कार हो पाया था। इन्होंने हनुमान बाहुक रचना भी की है। कुल मिलाकर इन्होने दर्जनों से अधिक ग्रन्थों की रचना की जो अपने आप में काफी प्रसिद्ध है। किन्तु रामचरित्र मानस जैसे कोई भी इतना प्रसिद्ध नहीं है। कुछ लोग इन्हें रामायण के रचाइया वाल्मीकि के अवतार के रूप में भी देखते हैं। अतः भक्ति एवं श्रद्धा की प्रतिमूर्ति गोस्वामी तुलसीदास जयंती प्रतिवर्ष बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। 

तुलसीदास एवं राम भक्ति

भगवान श्रीराम से प्रति बचपन से ही अत्यंत भक्ति एवं लगाव के कारण वह परम राम भक्त माने जाते है तथा उन्हें श्रीराम दर्शन का गौरव हासिल हुआ है। इस रामचरित्र मानस एवं रामचन्द्र से जुड़ने के कारण उन्हें इस संसार में जब तक श्रीराम चरित्र एवं रावण युद्ध आदि के प्रसंग धरा में विद्यमान रहेंगे तब तक उन्हें स्मरण किया जाता रहेगा। ऐसे परम पुनीत हिन्दू धर्म के महान कवि को प्रति वर्ष बड़े ही श्रद्धा एवं आदर के साथ नमन किया जाता है। तथा देश ही नहीं अपितु विदेश से भी लोग उनके दर्शन के लिये आते हैं।  भगवान राम के भक्त गोस्वामी तुलसीदास की जयंती मनाई जाती है।

तुलसीदास एवं रामचरित्र मानस की रचना एवं परीक्षणः भगवानराम के प्रति उनकी अटूट आस्था एवं भक्ति ने उन्हें महान पवित्र ग्रन्थ श्रीरामचरित मानस को लिखने के लिये पे्ररित किया था। क्योंकि वह श्रीरामचन्द्र के आदर्श एवं धीरता तथा वीरता से पूरी तरह दिल से जुड़े हुये थे। जिससे ऐसे अद्भुत ग्रन्थ का निर्माण हो सका जो अपने आप में पिता एवं परिवार, धर्म, समाज, राजनीति, युद्ध कौशल एवं धीरता तथा मैत्रीभाव न्याय एवं एकता आदि के अनेकों उपकारी शिक्षाओं को समाहित किये हुये है। जिसके पठन एवं स्मरण से सभी प्रकार की योग्यता व्यक्तियों को बड़े ही सहज भाव से मिल जाती है। ऐसे श्रीराम चरित्र मानस की रचना जब उस समय में सम्पूर्ण भारत ही नहीं अपितु विश्व में भी संस्कृत का परचम लहरा रहा था। और वह केवल देवभाषा न होकर आम लोगों की भी भाषा थी। तुलसीदास जी ने समाज की जरूरतों को ध्यान में रखते हुये इसकी रचना शुरू की तो वह इस ग्रन्थ को जितना भी संस्कृत में लिखते वह अगले दिन अपने आप ही कोरा हो जाता था। ऐसे में वह परेशान होकर ईश्वर का स्मरण करने लगे तथा उन्हें भगवान ने स्वप्न दिया कि तु इस ग्रंथ की रचना हिन्दी में करों। ऐसे में उन्होंने ने इसकी रचना हिन्दी में करना शुरू कर दिया जिससे में छन्द, रस, दोहा, एवं चैपाई, सोरठा तथा हिन्दी व्याकरण आदि का महत्व दिया वहीं स्थानीय भाषाओं जैसे अवधी, बुंदेली, खड़ी बोली आदि को भी स्थान दिया। जिससे यह गंन्थ आज भी उतना ही लोक प्रिया बना हुआ है। इतना हीं नहीं उस समय इनके द्वारा जब रामचरित्र मानस की रचना का कार्य पूर्ण हो गया तो कुछ लोगों ने इसे चुनौती दे दी कि यह सत्य एवं यदि स्पष्ट रूप से भगवान रामचरित्र को एवं उनसकी जुड़ी हुई घटनाओं को लिखा गया है। तो इसे वेद ग्रन्थों के साथ भगवान आदि देव महादेव के सुप्रसद्धि मंदिर काशी में रख दिया जाये। यदि यह शुद्ध होगा तो इसका निर्णय भगवान शिव करेंगे। ऐसे में सभी की सहमति होने जाने पर वैदिक ग्रन्थों के सबसे नीचे श्रीरामचरित्र मानस को रखा गया जिससके बाद भगवान के मन्दिर को ताले से बंद कर दिया गया और प्रातः काल देखा गया तो श्रीराम चरित्र मानस में सत्यं शिवं सुन्दरं अंकित था। तब लोगों एवं विद्वानों ने इसे प्रतिष्ठा दी और माना। गोस्वामी तुलसीदास जयंती: भक्ति और साहित्य का नवीन आदर्श।

गोस्वमी तुलसी दास एवं अन्य तथ्य

कहते है। कि इनकी रचनाओं एवं समाज को शिक्षा देने तथा अनेको प्रकार से समाज एवं देश का उपकार करने के लिये इनकी जन्म जन्यंती में देश में धूम मची हुई रहती है। तथा स्थान-स्थान पर भण्डारों का आयोजन होता है। जो गोस्वमी तुलसी दास द्वारा हस्तलिखित प्रतिलिप है। वह आज भी इनके जन्म ग्राम राजापुर में कुछ अंशों में सुरक्षित रखी हुई है। जिसके दर्शन के लिये लोग देश एवं विदेश आते हैं। गोस्वमी तुलसी दास ने भगवान विश्वनाथ की काशी नगरी में श्रावण मास में कृष्ण पक्ष के तृतीया में सन् 1680 में श्रीराम के चरणों का स्मरण करते हुये प्राणों को त्याग दिया था।

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