हिन्दी

विजयादशमी या दशहरा

Published On : September 4, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

विजयादशमी या दशहरा पर्व

यह परम पुनीत पर्व हिन्दू धर्म में अधर्म के नाश एवं असत्य पर सत्य के विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। यह त्यौहार प्रति वर्ष जनमानस में सत्य, दया, पे्रम, उमंग, उत्साह को भरने तथा प्रत्येक बुराई एवं अधर्म से लड़ने का बहुत ही उत्कृष्ट एवं सुविख्यात पर्व है। जो श्री हरि विष्णू के प्रमुख रामावतार के आदर्शो एवं मानवीय मूल्यों पर न्यौछावर होने का पर्व है। यह लोगों में भाईचारे तथा वीरता को युगों से जगाता चला आ रहा है। जैसे शरद ऋतु के आगमन से अनेकों जलाशयों का जल पवित्र हो जाता है। उसी प्रकार धरती में बढ़े हुये अत्याचारों को मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपने बल व पराक्रम के द्वारा हटाकर रावण जैसे अत्याचारी को मारकर लंका में विजय हासिल की थी। इसी विजयोत्सव के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष दशहरा यानी विजयादशमी का पर्व बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। इस पर्व को विजयादशमी एवं दशहरा दोनों नामों से जाना एवं पुकारा जाता है। इस तिथि में दश की संख्या का बड़ा ही महत्व है। दशमी तिथि में अधर्म पर धर्म की विजय हुई इसीलिये हमारे प्रबुद्ध एवं धार्मिक विद्वानों ने इस पर्व को विजय श्री देने वाला और विजयादशमी कहा है। इसी तिथि में रावण जैसे अत्याचारी का बध होने से तथा रावण के दशशीश होने से जिसका अर्थ दशहारा यानी दस सिर वाला अधर्मी रावण हार गया और उसकी जो दश इन्द्रियां बुराई एवं अत्याचार में लिप्त थी उनका समूल नाश हो गया है। उस दश सिर वाले रावण पर भगवान विजय श्री हासिल की है। इसी कारण इसका नाम दशहरा पड़ा। यह प्रतिवर्ष अश्विनी (जिसे स्थानीय भाषा में क्वार का महीना भी कहा जाता है।) माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसी दिन हिन्दू धर्म के लोग अपने अस्त्र-शस्त्रों को पूजते है। तथा युद्ध कला कौशल को सीखते हैं। इसी महीने इसी तिथि में माँ जगदम्बा दुर्गा ने महिषासुर को मारा था। जिससे धरती से पापों का विनाश हुआ और देवतागण एवं साधू लोगों का उद्धार हुआ था। इस वर्ष विजयादशमी का त्यौहार प्रतिवर्ष की भाँति 25 अक्टूबर 2020, अश्विनी मास शुक्ल पक्ष दिन रविार को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा।

विजयादशमी व्रत एवं पूजन विधि

इस विजय दशमी का व्रत एवं पूजन करने वाले साधक एवं श्रद्धालु भक्तों को नवरात्रि लगते ही अपने नियम एवं संयम का पालन करते हुये ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये। तथा प्रतिदिन भगवान राम एवं माँ आदि शक्ति जगदम्बा की पूजा बड़े ही भक्ति भाव के साथ करना चाहिये। तथा विजय दशमी की तिथि आने पर ब्रह्म मुहुर्त में उठकर शौचादि क्रियाओं को सम्पन्न करें तथा स्नादि शुद्धि क्रियाओं को पूर्ण करते हुये नये वस्त्राभूषण या फिर स्वच्छ धुले हुये आकर्षक वस्त्राभूषणों को धारण करें। तथा पूजन की सभी सामाग्री को एकत्रित करके देवी माँ और श्रीराम जी जहाँ विराज रहे हो या फिर अपने घर में ही उनकी प्रतिमा के सामने सम्पूर्ण पूजन सामाग्री को एकत्रित करके रख दें। और फिर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके किसी स्वच्छ आसन में बैठे और आचमन करें और फिर अपने ऊपर पवित्री जल को छिड़क लें। आसन को पवित्र करें तथा दीप जलायें और अपने व्रत एवं पूजन का संकल्प लें। इस प्रकार षोड़शोपचार विधि से पूजा माँ जगदम्बा की करें। और भगवान श्रीराम माता सीता तथा लक्षमण एवं हनुमान सहित सम्पूर्ण राम दरबार की पूजा भी करें। या किसी ब्रह्मण के द्वारा इस पूजा को करवा सकते हैं। जिससे मंत्र एवं अन्य पूजा जनित गलितयों से बच सकते हैं। या फिर अपने आप ही पूजा अर्चना करें। और भवगान से अपनी गलतियों की क्षमा मांगे तथा अपनी मनोकामना उनके सम्मुख रखें। कि हे! प्रभु आप हमारे पाप एवं कष्टों को दूर करो तथा हमें सद्बुद्धि दें। और हमें जीवन मे यश एवं कीर्ति मिलती रहे। इस प्रकार प्रार्थना करते हुये अपने सम्पूर्ण पूजन कर्म को भगवान को अर्पित करें दें।

विजयादशमी एवं भगवान राम

भगवान राम के संदर्भ में अनेक विशाल ग्रन्थों की रचना हुयी है। जिसमें बाल्मीक रामायण एवं श्री गोस्वामी तुलसीदास कृत श्रीरामचरित्र मानस आदि प्रमुख है। भगवान की कथा और उनका दया भाव इतना विशाल है जिसका वर्णन शेष, महेश, गनेश एवं विद्या की देवी माँ शारदा भी नही कर सकती है। तो हमारी बुद्धि कैसे वहाँ पहुंच सकती है। भगवान राम के जन्म के संबंध में गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित्र मानस में वर्णन हैः राम जन्म के हेतू अनेका। एक ते अधिक एक बड़ एका।। अर्थात् श्री विष्णू के अवतार भगवान राम के जन्म के कई कारण है उनमें से एक से बढ़कर एक बड़े कारण हैं। जब धरती पर रावण जैसे अत्याचारियों का अधर्म बढ़ने लगा तो धरती सहित अनेक ऋषि मुनि और देवतागण श्री हरि विष्णू से प्रार्थना करते हैं, कि हे प्रभु। धरती के पापचार को मिटाओं और धर्म की स्थापना करों। क्योंकि साधु सज्जन और प्रजाजन अत्याचारों से त्राहीमाम कर रहे हैं। जिससे भगवान को महाराज दशरथ के यहाँ जन्म लेना पड़ा। और वह अपने बाल क्री़ड़ाओं से महाराज दशरथ एवं माता कौशल्या को अनुग्रीत कर रहे थे। तथा अपने जन्म के आधार को सिद्ध करते हुये घर परिवार एवं समाज की बुराइयों का अंत किया और बड़े अजेय योद्धाओं को जीता तथा उनका संहार करके धरती में धर्म की स्थापना का संदेश दिया। असीम शक्ति का स्रोत होते हुये भी वह कभी अपनी मर्यादाओं को नहीं भूले। जिससे उन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम भी कहा जाता है। आज उनकी भक्ति एवं नाम का स्मरण प्रत्येक हिन्दू धर्मावलम्बी करते हैं और उन्हें अपने तन एवं मन में बसाये हुये रहते हैं।

विजयादशमी का महत्व

यह पर्व हमारे लिये कई मायनों में बड़ा उत्कृष्ट एवं सर्वोपरि है। जो धार्मिक दृष्टि से अति विशिष्ट एवं उपयोगी है। वहीं यह हमारे परिवार एवं घर की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। इसी प्रकार सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टिकोण तथा राजनैतिक दृष्टि कोण से भी महत्वपूर्ण है यह त्यौहार जनमानस को प्रति वर्ष अनेक पहलुओं की शिक्षा देता है। तथा लोगों में अत्याचार एवं बुराई से लड़ने का बड़ा ही प्रभावशाली संदेश एवं शिक्षा भी देता है। क्योंकि लंका के राजा रावण की क्रूरता एवं साधु संत एवं सज्जनों पर अत्याचारों से जहाँ सम्पूर्ण मानवता पीड़ित हो चुकी थी, वहीं इस धरती पर भी लोग भयभीत होकर त्राहिमान कर रहे थे। रावण की शक्तियां जो कि बड़े-बड़े देव समूहों को पराजित कर देती थी। और वह लगातार अपने प्रभाव को समूचे ब्रह्माण्ड में विस्तृत कर रहा था। ऐसे में किसी भी व्यक्ति एवं अन्य देवताओं की हिम्मत उसकी तरफ आंख उठाकर देखने की नहीं थीं। वह प्रकृति के संतुलन को खराब करने की लगातार कोशिश में था। जिससे धरती में भय एवं अत्याचार का माहौल बन चुका था। इस प्रकार तमाम तरह की बाधाओं एवं शक्तियों से लड़ते हुये भगवान ने लोगों को यह संदेश दिया कि बुराई एवं अत्याचार तथा पाप करने वाला चाहे कितना शक्तिशाली हो उसके पास रावण जैसा धन वैभव हो और दिव्य शक्तियों से युक्त हो तथा विशाल सेनाओं का समूह हो, तो भी वह नहीं बच सकता। अच्छाई एवं धर्म के रक्षक भगवान उसे मार देते है। तथा धर्म की स्थापना करते हैं। इस प्रकार से यह त्यौहार कई तरह की समस्याओं को हल करने एवं जीवन में समांजस्य बनाकर चलने का हैं। यह बड़ा ही पुण्यकारी अवसर है जो बुराई पर अच्छाई की विजय का, असत्य पर सत्य तथा धर्म एवं मानवता के विरोधी राक्षस पर देवताओं की विजय का दिवस है। यह विजय दशमी का पर्व जिसके संबंध में मुहुर्त चिंतामणि में कहा गया है कि यह दशहरा एवं विजय दशमी का पर्व आश्विन शुक्ल पक्ष की दशमी में तारों के उदित होने से सभी कार्यों मे विजय दायक होता है।  अतः इस दिन स्नान दान, जप, पूजन, हवन, तथा आयुध पूजन का विशेष फल एवं लाभ प्राप्त होता है। इस पर्व में प्रयाग गंगा आदि तीर्थों मे स्नान दान एवं देव, ऋषि एवं पितृ तर्पण करने से व्यक्ति के दश दोषों का नाश हो जाता है। जिससे उसके दुःख समाप्त होते हैं। तथा व्यक्ति सुख समृद्धि के रास्ते में निरन्तर आगे बढ़ने लगता है।

विजयादशमी की कथायें

श्री विजयादशमी या दशहरा की कई कथायें हमारे धर्म ग्रंथों एवं पुराणों में वर्णित हैं कि दुष्ट राक्षसों के संहार हेतु त्रेता युग में भगवान विष्णू ने रामावतार में जन्म लिया था। जो युगों पहले त्रेता युग की घटना होने के बाद भी आज भी लोगों में उसी प्रकार प्रचलित है, जैसे पहले थी। इस संबंध में पुराणों में वर्णन है कि त्रेतायुग में अयोध्या नगरी में श्री हरि विष्णू ने अपने अंशों सहित अवतार धारण किया है। जिसमें राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न चारों भाइयों में प्रीति ही प्रीति थी जो परस्पर एक दूसरे के प्रति मान-सम्मान एवं चाहत की भावना रखते थे। तथा राक्षस समूह के विनाश हेतु उनका जन्म हुआ था। सज्जन एवं साधू लोग राक्षसों से दुःखी होकर अपनी भक्ति एवं चाहत के आधार पर भगवान को धरती पर जन्म लेने हेतु मजबूर कर दिया था। जिससे भगवान श्रीराम अपने अंशों सहित अवतार धारण किया। जिसमें श्री बाल्मीक रामायण एवं श्री राम चरित्र मानस सबसे प्रमुख है। इसे प्रतिपदा से लेकर दशमी तिथि तक मनाने के कारण दश उत्सव के रूप में जाना जाता है। ऐसी भी कथा प्रचलित है कि रावण भगवान के हाथों अपना उद्धार चाहता था। इसलिये विद्वान होते हुये भी अधर्म एवं अत्याचार करता था और वह छल से साधू का वेश बनाकर माता सीता का अपरहण कर लिया। जिससे पापी रावण को भगवान श्रीराम ने मारकर दशमी के दिन विजय हासिल किया था। इसी प्रकार जगदम्बा देवी के बारे में कथा प्रचलित है। कि महिषासुर नाम का राक्षस अमर होने के उद्देश्य से परम पिता ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दिया था कि तुम अमरत्व तो नहीं प्राप्त कर सकते हो किन्तु तुम्हारी मृत्यु साधारण तरीके से नहीं होगी। किन्तु स्त्री के हाथों तुम अपने अत्याचार एवं पापाचार तथा अहंकार के कारण मारे जाओगे। जिससे देवी ने दिव्य देवी एवं देवताओं के शरीर के अंश से जन्म लिया और इसी तिथि में राक्षस का संहार किया था जिससे इसे विजय दशमी कहा जाता है। तथा माँ दुर्गा का रूप महिषासुर मर्दिनी के नाम से विख्यात हुआ आदि अनेक कथायें प्रचलित हैं। इसी प्रकार इस तिथि का ऐतिहासिक महत्व भी है। जिसमें महाराज शिवाजी ने हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु इस दिन के महत्व को समझते हुये औरंगजेब के खिलाफ युद्ध शुरू किया था तथा उसकी सेनाओं को पराजित किया था।

विजयादशमी की मान्यतायें

विजयादशमी के बारे में मान्यतायें है कि यह कम से कम व्यक्ति के दश पापों को नाश करता है। किन्तु इसके लिये व्यक्ति को विधि पूर्वक तीर्थ स्नान एवं दानादि क्रियाओं को संचालित करने का विधान होता है। इसी प्रकार नीलकण्ड पक्षी के दर्शन की भी मान्यतायें हैं। ऐसा कहा जाता है। कि दशहरे के दिन यदि किसी को नीलकण्ठ नामक पक्षी दिखे तो उसे देखने के कारण व्यक्तियों को गंगा के स्नान एवं दान का पुण्यफल प्राप्त होता है। तथा रोगों एवं पीड़ाओं में शान्ति मिलती है। इसी प्रकार इस पर्व में आयुध को पूजने तथा दुर्गा देवी की पूजा एवं बलिदान देने की मान्यतायें है। इस पर्व में यह भी मान्यता है कि विजयश्री हेतु माँ दुर्गा और श्रीराम एवं शमी वृक्ष की पूजा करनी चाहिये। क्योंकि माँ दुर्गा एवं श्रीराम जहाँ शक्ति के स्रोत है। वही शमी अग्नि का स्रोत है। इस दिन लोग किसी बड़े स्थान में सामूहिक रूप से एकत्रित होकर सायं काल के समय रावण कुम्भ करणादि के पुतलों को जलाते हैं। इस प्रकार लोगों से परस्पर पे्रम भाव से मिलने की मान्यतायें भी प्रचलित है। ऐसी मान्यतायें है कि भगवान राम ने आज के ही दिन पापी रावण का वध किया था। जिससे उसके पापो का नाश हुआ था और धरती में साधू संतों ने पुनः धर्म ध्वाजा को देखा था। इस दिन बड़े विशाल पुलते बनाकर रावण आदि राक्षसों को जलाये जाने की मान्यतायें हैं। तथा किसी कार्य शुरूआत करने का अच्छा अवसर माना जाता है। इस दिन जो कार्य किया जाता है। उसके सफल होने की मान्यतायें व्याप्त हैं। प्राचीन काल में राजे एवं रजवाड़े अपने रथों एवं आयुधों की पूजा इस अवसर पर दूसरे राज्यों में विजय लक्ष्य को हासिल करने के लिये करते थे। जो परम्परागत आज भी प्रचलित है। इस प्रकार अनेकों लोक मान्यतायें दशहरे के विषय में आज भी जीवंत बनी हुई है।

विजयादशमी मित्रता व भाई चारे का प्रतीक

यह पर्व भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में भाईचारे एवं एकता का प्रतीक है। वहीं अत्याचार एवं अधर्म को नाश करने की शक्ति देने वाला है। तथा घर एवं परिवार और समाज में फैली हुई बुराइयों को नाश करके धर्म की स्थापना एवं रक्षा का संदेश देता है। अधर्म एवं पाप के नाश हेतु चाहे कितनी बड़ी चुनौती हो पर उसका खात्मा करके ही दम लेना चाहिये। यह पर्व भारतीय जन समुदाय को परस्पर बैर भावों को भुलाकर मिलकर चलने एवं एक दूसरे से गले लगने का संदेश देता। जिससे लोग ईष्र्या द्वेष को भुलाकर लोगों से मिलते हैं। और उन्हें बधाइयां देते हैं। लोग अपने से पूज्य एवं बड़े बुजुर्गो तथा गुरूजनों के पैर छूकर आशीर्वाद लेते हैं। यह घरों की साफ-सफाई एवं स्वच्छ वातावरण बनाने का भी बड़ा ही सुगम संदेश देता है। जिससे लोगों में पे्रम, सद्भाव एवं स्वच्छता के विचारों का उदय होता है। जिससे लोग खुशहाल जीवन जीते हैं।

विजयादशमी पर्व की धूम

यह एक बड़ा ही विशाल पर्व है। जिसकी स्थान-स्थान पर धूम मची हुई रहती है। लोग बड़े ही हर्षोल्लास के साथ राम लक्षमण एवं भरत शत्रुघ्न सहित रावण एवं कुम्भकरण तथा मेघनाद आदि की बड़ी ही मनोहर झाकियों की शोभा यात्रा को सजाकर गांव-गांव एवं नगर निकालते हैं। इस झांकी का हिस्सा बच्चे नवयुवक एवं बुजुर्ग सभी होते हैं। रामलीला मंचन का आयोजन स्थान-स्थान पर बड़े ही दिव्य तरीके से किया जाता है। कई कलाकारों की साज-सज्जा इस प्रकार होती मानों साक्षात् श्री रामप्रभु एवं माँ जानकी ही शोभा यात्रा मे शामिल हो गये हो। अयोध्या सहित पूरे भारतवर्ष में श्रीराम नवमी एवं दशहरा के अवसर पर मेले आदि का आयोजन किया जाता है। जिसमें देश और विदेश से अनेक श्रद्धालु भक्तों का जमावड़ा लगा हुआ रहता है। इस प्रकार भारत के विभिन्न शहरों में इस दशहरे पर्व की बड़ी धूम मची हुई होती है। जिसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, महारष्ट्र, मैशूर, कुल्लू जो हिमाचंल प्रदेश में है। पंजाब, बंगाल, उड़ीसा, गुजरात, काश्मीर सहित भारत की राजधानी दिल्ली एवं अन्य स्थानों में दशहरा का मेला बड़ा उत्तम और लुभावना होता है। इस अवसर पर लोग अपने कुल देवी एवं देवता की पूजा आराधना करते है। तथा विविध प्रकार के वाद्य यंत्रों को बजाते एवं गाते नाचते हुये दिव्य झांकियों को सजाकर निकलते हैं। तथा अनेक देवी-देवताओं की पूजा प्रतिष्ठा करते हैं। तथा विभिन्न प्रकार की दुकानें भी बड़ी अच्छी तरह से सजी धजी हुई होती है। जिससे लोग जहा अपने पसंद की वस्तुओं को क्रय-विक्रय करते हैं। वहीं मिठाइयों का आनन्द लेते हैं। इस प्रकार इस दशहरे की धूम पूरे विश्व में होती है किन्तु भारतवर्ष में कोने-कोने से लोगों का हुजूम उमड़ उठता है। इस दिन दुर्गा पाण्डलों में माँ दुर्गा की पूजा अर्चना विशेष रूप से किये जाने का विधान होता है। जिससे सौभाग्यवती स्त्रियां माँ दुर्गा को बड़ी ही श्रद्धा भक्ति के साथ सोलह श्रंगार की सामागी को चढ़ाती हैं। तथा उन्हें विविध प्रकार की मांगलिक वस्तुओं से सजाती है। जैसे-सौभाग्य दायक सिंदूर, कंगन, चूड़ी, महावर, नथ आदि तमाम वस्त्राभूषणों के द्वारा माता का श्रृंगार किया जाता है। तथा स्त्रियां सौभाग्य सूचक सिंदूर को एक दूसरे को लगाती एवं वितरित करती हैं। तथा पुरूष वर्ग रोली आदि को लगाकर एवं गुलाल तथा पुष्पों की वर्षा की धूम मचाते हैं। तथा अगले दिन एकादशी तिथि में उनका विर्सजन किया जाता है। तथा नवरात्रि को व्रत करने वाले जो नव दिनों पर्यन्त या फिर नवमी के व्रत को करते  है। उनका दशमी तिथि में पारण हो जाता है। इस पर्व में लंका विजयी प्रभु श्रीराम के द्वारा पापी रावण का वध करने पर एवं उनके आगमन पर सभी लोग परस्पर आपस में गले मिलते हैं। तथा अपने से पूज्य एवं बड़ों के घर जाकर उन्हें प्रणाम करते हैं। इस प्रकार यह दश दिन का उत्सव पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जो हमारे यश विजय एवं सुख समृद्धि का सूचक है।

यह भी पढ़ना न भूलें:
नवदुर्गा का शक्ति पर्व नवरात्री और दुर्गाष्टमी व्रत