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बगलामुखी जयंती

Published On : April 11, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

बगलामुखी जयंती एवं उसका महत्व

बगलामुखी जयंती: इस पृथ्वी में आये हुये संकटों एवं देव समूहों के द्वारा उसे टालने और त्रिकोली को सुरक्षित रखने और उसे नष्ट होने से बचाने के लिये अनेकों बार उन्हें भनायक उत्पातों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सम्पूर्ण देव समूह जब उन्हें लगता की कि इस धरती की रक्षा असम्भव है। एवं धर्म तथा अधर्म के मध्य समांजस्य बिगड़ गया है। तब त्रिदेव समूहों ने एक अदुभुत एवं परम कल्याणकारी शक्ति की आराधना एवं उसका सृजन किया। इसके अनेकों प्रणाम हमारे धर्म ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। ऐसे ही जब सतयुग में प्रलयकारी तूफान आया तो भगवान विष्णू की अस्तुति से माँ बगलामुखी का अवतरण हुआ था। तब से आज तक माँ भगवती की जयंती बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इन्हें वल्गामुखी या बगलामुखी माता एवं पीताम्बरा के नामों से जाना एवं पूजा जाता है। यह परम शक्ति दश विद्याओं में अति विशिष्ट श्रेणी में है। वल्गामुखि के नाम का अर्थ रोकने एवं स्तंभित कर देने से है। माँ बगलामुखी पीतवर्ण तथा पीले वस्त्राभूषणों एवं पुष्पों से सुशोभित होती हैं। तथा भक्तों के वांछित को देने वाली होती है। उन्हें पीले रंग अधिकप्रिय एवं मोहक होते हैं। उनके चेहरे पर स्वर्णिम आभा आलंकृत होती है। इस कलिकाल में भक्तों के अभीष्टफल को देने वाली तथा उनके दुखों को दूर करने वाली हैं। इस जगत में किसी भी उपद्रव को रोकने एवं स्तम्भित करने की शक्ति से युक्त जगत की अधिष्ठात्री है। वैशाख शुक्ल पक्ष की अष्टमी को माता की जयंती मनाई जाती है। इस दिन इनकी जन्म जयंती में विशेष पूजा एवं अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। तथा रात्रि जागरण किया जाता है। युद्ध एवं शत्रु से विजय हेतु कई प्रकार के विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है। बगलामुखी जयंती पर माँ की पूजा से शक्ति, विजय और शत्रु पर नियंत्रण प्राप्त होता है।

माँ बगलामुखी की कथा

माँ के संबंध में धर्मशास्त्रों में अनेक धर्म ग्रन्थों में कथानक प्राप्त होते हैं। जिसमें प्रमुख रूप से प्रचलित कथा है कि सतयुग में बड़ा ही विशाल प्रयलकारी तूफान उठा जो धरती सहित त्रैलोकों को नष्ट करने में तुला हुआ था। इसे रोकने में सभी देवता असमर्थ थे। जिससे देव समूहों ने भगवान शिव से शरण माँगी और शिव ने विष्णू को आदि शक्ति को प्रसन्न करने को कहा जिससे भगवान विष्णू हरिद्रा सरोवर के तट पर बैठकर साधना करने लगे। उनकी साधना से प्रसन्न होकर देवी बगलामुखी प्रकट हुई जो पीताम्बर धारी और पीत वर्ण से युक्त तथा स्वर्णिम आभा से युक्त थी। तभी से देवता सहित मनुष्य द्वारा माँ की आराधना में पीली वस्तुयें प्रयोग की जाती है। यानी माँ ने उस महान संकट से त्रिकोली की रक्षा की। इसी रक्षा एवं सुरक्षा को ध्यान में रखकर उनकी पूजा अर्चना की जाती है। बगलामुखी जयंती: मां बगलामुखी की पूजा और अनुष्ठान, शक्ति और विजय का प्रतीक है।

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