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अनंत चतुर्दशी व्रत

Published On : August 14, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

यह हमारे व्रत एवं पर्व का बेहद पवित्र सोपान है। जो युग युगान्तरों से अविरल स्वच्छ नदी की तरह लोगों के लिये वरदान है। जहाँ प्रत्येक पिपासा से युक्त व्यक्ति को शांति मिलती है। ऐसा सुखद अनुभव एवं शांति जिसे युगों से वेद एवं पुराण गाते चले आ रहे हैं। भटकते हुये मानव जीवन को संवारने के क्रम में यह उन कई सोपानों का अति विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण अंग है। जहाँ पहुंचकर लोगों को अनेक दुःखों से छुटकरा प्राप्त हो जाता है। इसी क्रम में हमारे व्रत एवं पर्वों का सबसे महत्वपूर्ण व्रत एवं पर्व अन्नत चतुर्दशी तिथि का आगमन होता है। जिसे प्रत्येक श्रद्धालु भक्त बड़ी ही श्रद्धा एवं विश्वास के साथ करते है। जो प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष तिथि की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। जो इस वर्ष 01.09.2020 को दिन मंगलवार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि दिन मंगलवार को विधि विधान पूर्वक बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जायेगी। यह व्रत अपने आप बड़ा ही अनूठा एवं सभी स्त्री पुरूषों को सुख एवं सौभाग्य देने वाला होता है। इस दिन श्री हरि अनंत रूप की पूजा अर्चना करने का विधान होता है। क्योंकि भगवान सम्पूर्ण जगत के नियंता एवं पालनहार है। उन्हीं की कृपा से समस्त लोगों का पालन हो रहा है। ऐसे लोग जिन्हें मानव जानता भी नहीं या और उनके आदि अंत का पता भी नहीं लगा सकता है। ऐसे भी लोकों को स्वामी होने के कारण श्री हरि को अन्नत कहा जाता है। क्योंकि इस संबंध में गोस्वामी तुलसीदासः श्रीरामचरित मानस में लिखते है। हरि अन्नत हरि कथा अन्नता। कहहिं सुनहिं बहुविधि सब संता।। अर्थात् शक्ति एवं रूप रंग आदि सब अनन्त जिसका पार पाना बड़ा असम्भव है। उन्हीं मे सम्पूर्ण जगत् समाया एवं रचा वसा हुआ है। अतः उनकी कृपा प्रसाद को प्राप्त करने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को उनकी भक्ति करनी चाहिये।

अनन्त चतुर्दशी का व्रत एवं पूजा विधि

इस पर्व में व्रत एवं पूजा हेतु कुछ विशेष नियमों का पालन करने की जरूरत होती है। इस व्रत से एक दिन पूर्व ही ब्रह्मचर्य एवं संयम का पालन करना चाहिये। तामसिक आहारों का पूर्णतः त्याग करने की जरूरत रहेगी। क्योंकि आप जितना सात्विक होगे। उतना ही आपको व्रत का फल प्राप्त होगा। व्रत के दिन ब्रह्मचर्य मुहुर्त में उठकर शौचादि स्नानादि विधि पूर्वक सम्पन्न करें। तथा नया या फिर स्वच्छ वस्त्र धारण करके, कुश या कम्बल के आसन में पूर्वाभिमुख होकर बैठे तथा भगवान विष्णू का ध्यान करते हुये व्रत का संकल्प लें। कि हे! प्रभु मेरे मन व बुद्धि को स्वच्छ करें तथा मुझे इतनी शक्ति देना कि मै उत्साह पूर्वक आपके व्रत नियमों का पालन कर सकॅू और आपकी कृपा से मुझे आयु आरोग्य एवं धन धान समृद्धि प्राप्त हो आदि प्रकार से जो आपकी कामना उसे भगवान के साथ भक्ति पूर्वक रखें। यह मानसिक संकल्प होता है। पूजन की उपयुक्त सामाग्री को एकत्रित करके खुद ही पूजन करें या फिर किसी विद्वान ब्रह्मण के सहयोग से करवायें। अपने ऊपर पवित्री मंत्र बोलकर अपने आपको पवित्र करें। एवं आचमन करें तथा एक सुन्दर से कलश की स्थापना करें। तथा अष्टदल के पुष्प को निर्मित करके उसमें भगवान अन्नत की प्रतिमा स्थापित करें। या फिर भगवान विष्णू की प्रतिमा मे अन्नत का ध्यान करते हुये पूजा करें। धूप दीपादि जलाकर उसे प्रतिष्ठत करें। और फिर अनंत सूत्र के निर्माण हेतु कोई स्वच्छ धागा एवं डोरी को पहले गंगाजल से शुद्ध कर लें और उसे केसर कुमकुम तथा हल्दी से रंग दें हल्दी अधिक चढ़ी हुई होनी चाहिये ऐसे अनन्त सूत्र निर्माण करें। इसे बनाते समय कुछ सावधानी रखें जैसे किसी से बात न करें और एक आसन में बैठकर भगवान विष्णू का ध्यान करते हुये इसमें थोड़ी-थोड़ी दूर में 14 गांठों का निर्माण करें। इसे अभिमंत्रित करने के लिये भगवान के पास रख दें। और भगवान की पूजा के साथ इसकी भी पूजा करते रहें। षोड़शोपचार विधि से भगवान की विधिवत  पूजा करें या फिर ब्रह्मण पण्डितों से करवायें। अपने पूजन को भगवान का ध्यान करते हुये उन्हे अर्पित कर दें। तथा भगवान के मंत्रों को जपे इस प्रकार अपने सम्पूर्ण जप एवं पूजन को भगवान में अर्पित कर दे। और फिर अंनन्त सूत्र को प्रणाम करके भगवान का ध्यान करते हुये इसे पुरूष अपने दाहिने हाथ एवं स्त्री अपने बाये हाथ में धारण करें। तथा श्रद्धा भक्ति से भगवान को पुनः प्रणाम करें। और ब्राह्मणों को द्रव्य दक्षिणा तथा भोजन करायें और पुनः दक्षिणा आदि दान देकर उन्हें प्रणाम करें तथा बड़े ही आदर भाव के साथ उन्हें विदा करें। तथा अपने व्रत एवं नियम के अनुसार खुद भी भोजनादि करें और पूरे परिवार को भी करवायें तथा भगवान के गुणों एवं भजनों का चिंतन करते रहें। जिससे भगवान की कृपा से सभी मनोवांछित कामनायें पूर्ण होती है।

अनन्त चतुर्दशी का महत्व

यह सामाजिक एवं धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत एवं पर्व है। जो श्री हरि के विष्णू की भक्ति एवं कृपा प्रसाद हेतु किया जाता है। क्योंकि भगवान विष्णू ही जगत के पालनकर्ता एवं रक्षक हैं। इस संबंध में अग्निपुराण का कथन बड़ा ही स्पष्ट है। जिसमें वर्णन है कि अन्नत चतुर्दशी के दिन भगवान का व्रत रखना चाहिये तथा भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा अर्चना करना चाहिये जो सभी शुभ वांछित फलों को देने वाला है। श्री हरि विष्णू जिन्हें अन्नत आदि कई हजारों नामों से जाना जाता है। क्योंकि भगवान ही सभी लोक के स्वामी है। उन्हें ही नारायण एवं सत्यनारायण तथा वासुदेव आदि कई नामों से जाना एवं पूजा जाता है। इस व्रत में भगवान को चौहद लोकों के स्वामी के रूप में पूजने का महत्व है। भगवान विष्णू ही इन लोकों के पालन एवं संचालन कर्ता है। जिन्हें तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भूः  भुवः स्वः मह, जनः तपः सत्यं के नाम से जाना जाता है। जो व्यक्ति  प्रत्येक लोक के स्वामी के अनुसार भगवान विष्णू की पूजा एवं पूरे श्रद्धा विश्वास के साथ लगातार 14 वर्षों तक करता है। उसे नाना प्रकार की सुख सम्पत्ति होती है। तथा अन्तकाल में श्री विष्णू भगवान के धाम को जाता है। अतः यह व्रत हमारे लिये कई तरह से महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस व्रत एवं पूजन से लोगों के मन शान्ति एवं सद्भाव जैसे गुणों का विकास होता है। अतः अच्छे कर्म के प्रति आकर्षित होता है। तथा यह एक भक्ति एवं सद्भावना का प्रतीक है।

अनन्त चतुर्दशी की कथा

इस व्रत एवं पर्व के बारे धर्म ग्रन्थों में कई कथानक प्राप्त होते है। जिसमें इसके संबंध में यह कहा जाता है। कि इस व्रत को करने से श्रद्धालु भक्तों के रोग एवं शोक, दुःख आदि नष्ट हो जाते हैं। तथा इसे करने से मनुष्य श्री हरि का सानिघ्य प्राप्त करता है। इस संदर्भ में एक पौराणिक कथा है कि बहुत पहले एक विद्वान ब्रह्मण थे। जो कि अपने धर्म पत्नी के साथ भगवान की भक्ति में लिप्त थे। उनकी पत्नी भी बड़ी ही भगवान की भक्त थी। उनके एक पुत्री हुई जिसका नाम दीक्षा था। उस पुत्री को दोनों बड़े ही लाड़ प्यार से पाल पोष रहे थे। किन्तु दुर्भाग्यवश उस ब्रह्मण की पत्नी का स्वर्गवास हो गया है। जिससे सुशीला की परवरिश का ध्यान रखते हुये उसके पिता सुमंत ब्राह्मण ने पुनः अपना विवाह कर लिया किन्तु वह स्वभाव से बड़ी ही क्रूर एवं दुष्ट प्रकृति की थी। और वह दिन-प्रतिदिन उस लड़की के प्रति अपनी कू्रता को बढ़ाती जा रही थी। किन्तु उस लड़की का व्यवहार बड़ा ही सभ्य एवं सुशील था। पिता ने कन्या को विवाह के योग्य देखकर उसका विवाह कौणिडन्य ऋषि से कर दिया। किन्तु वह विवाह के बाद से वह नवविवाहित जोड़ा अपने माता के पास रह रहा था। किन्तु उसकी सौतेली माँ के कू्र व्यवहार के कारण उन्होंने तंग आकर उनके आश्रम को छोड़ दिया जिससे वह जीवन के कठिन समय से परेशान होने लगे और अपने जीवन यापन के लिये दर-दर भटकने लगे। इसी तलाश में वह एक दिन एक नदी के किनारे पहुंचे तो उन्होंने देखा की महिलाओं का बड़ा समूह कुछ पूजा अर्चना कर रहा है तथा परस्पर एक दूसरे को रक्षासूत्र बांध रही है। इसे देखकर सुशीला ने उनसे पूछा कि यह कौन सा व्रत है तथा इसका क्या महत्व है। इस जिज्ञासा को जानकर महिलाओं ने कहा कि यह भगवान अनन्त का व्रत है। जिसके करने से जीवन की सारी परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है। तथा जो मनोकामनायें है उनकी पूर्ति होती है। इस व्रत को जानकर सुशीला ने बड़े ही भक्ति भाव के साथ इस व्रत का पालन किया। तथा अनन्त सूत्र को धारण करके श्री हरि विष्णू से सच्चे दिल से प्रार्थना किया कि हे! प्रभु आप मेरे पति एवं मेरे जीवन को सुखद कर दो तथा जीवन से अभाव एवं गरीबी को हटा दो। इस प्रकार श्री हरि की कृपा से वह दोनों सुखद जीवन जीने लगे, किन्तु जब अगले वर्ष वह पुनः इस व्रत के विधान को करने लगी और वह भगवान अंनन्त के रक्षा सूत्र को धारण करके पति के समीप पहुंची, तो पति ने उससे पूछा तो पत्नी ने उसे भगवान का प्रसाद बताया और कहा कि यह सब इसी व्रत एवं अंनन्त सूत्र का प्रभाव है। जिससे हमारे जीवन में खुशहाली आयी है। तो इस बात से पति क्रोधित हो गये कि मै जो इनती मेहनत करता हॅू यह उसी का परिणाम है न कि तुम्हारे व्रत एवं अंनन्त सूत्र का इस प्रकार पत्नी के उस सूत्र को गुस्से में आकर तोड़ दिया जिससे भगवान क्रोधित हो गये और उनका वैभव छिन गया। जिससे वह पहले की ही तरह दर-दर भटकने लगे। किन्तु इस संबंध में उन्होंने एक ऋषि से इस बात को पूछा तो उन्हें अपने किये पर पश्चाताप हुआ। और वह लगातार इस व्रत को 14 वर्षो तक जिससे जिससे उनका जीवन खुशहाल हुआ। दूसरी कथा पाण्ड़वों के वनवास काल से जुड़ी है। तथा एक प्रसंग युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ से जुड़ा हुआ है।

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