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करवा चौथ व्रत

Published On : October 2, 2022  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

करवा चौथ व्रत एवं उसका महत्व

यह व्रत परम पावन हिन्दू धर्म में सौभाग्य एवं सुख शांति की प्राप्ति हेतु किया जाता है। इसे भारत के कुछ प्रान्तों जैसे पंजाब,राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश आदि राज्यों में विशेष रूप से किया जाता है। यह व्रत कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चौथ को किया जाता है। इसे करवा चौथ एवं करक चतुर्थी के नाम से भी जाना है। इस व्रत को सुहागिन स्त्रियां यानी विवाह होने के बाद पति की दीर्घायु और आरोग्यता की कामना एवं घर परिवार में समृद्धि की कामना से करती हैं। इस व्रत में सभी शहर एवं गांव की महिलायें बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं। तथा बड़ी ही श्रद्धा विश्वास के साथ इस कठिन व्रत का पालन करती है। वह इस व्रत में पूरे दिन निराहार और निर्जल यानी बिना पानी पिये हुये रहते हुये चन्द्रोदय काल में चन्द्रदेव को अर्घ्य देकर पूजादि करने के बाद ही व्रत को सम्पन्न करती हैं। इसमें सूर्योदय व्यापपिनी तिथि नहीं बल्कि चन्द्रोदय व्यापिनी तिथि का अत्यंत महत्व होता है। चतुर्थी तिथि में व्रत के महत्व एवं चन्द्रादि देवताओं के पूजन का शास्त्रों में बहुत ही महिमा मण्डित किया गया है। इस दिन सौभाग्यवती महिलायें विविध प्रकार के पकवानों एवं व्यंजनों को तैयार करके उसे गणेशादि शिव पार्वती सहित चन्द्रदेव को अर्पित करती है। तथा पूरे हर्षोल्लास के साथ इस व्रत का पालन करती है। इस व्रत को लगातार बिना अन्तर किये बारह या फिर 16 वर्षों तक पूरे श्रद्धा एवं विश्वास के साथ रखने का विधान होता है। इसके बाद पूरे विधि विधान के साथ इसका उद्यापन किये जाने यानी व्रत की सम्पूर्णता का विधान होता है। किन्तु कहीं-कहीं आजीवन सौभाग्यवती महिलायें इस व्रत का पालन करती हैं।

करवा चौथ व्रत एवं पूजा विधि

इस व्रत में सौभाग्यवती महिलायें अपने घरों एवं समूहों में एक स्थान में बैठकर पूजा एवं व्रत का पालन करती है। अपने परम्परा एवं स्मृति के अनुसार लोकगीत तथा भक्ति पूर्वक गीतों को गाती एवं श्रवण करती है। व्रत वाले दिन जहा चौथ माता के मन्दिर है। वहां मन्दिरों में पूजा होती है। इस व्रत के प्रधान देवता चन्द्रदेव है। जिन्हें अर्घ्य देने एवं पूजा करने का विधान होता है। इस व्रत में महिलाये पूरी पवित्रता एवं शुद्धता के साथ व्रत का पालन करती हैं। तथा इस व्रत एवं पूजा में विहित सम्पूर्ण पूजन की सामाग्री को एकत्रित करके विविध तरह के पकवानों को बनाती है। तथा सोलह श्रृंगारों से युक्त मांगलिक साज-सज्जा सिंदूर आदि को धारण करके बड़ी ही प्रसन्न मुद्रा से पूजा करती हैं। जिसमें देशी गाय का शुद्ध कच्चा दूध सुगन्धित पुष्प घी, दिये करवे आदि को एकत्रित करके श्री गणेश, भगवती पार्वती एवं भगवान शिव, नन्दी, कार्तिकेय, कुबेर, कलश आदि देवताओं की पूजा तथा चन्द्रोदय के समय चन्द्रमा को विशेष अर्घ्य देने का विधान होता है। तथा पूजा के बाद उस पूजा को भगवान को अर्पित किया जाता है। किसी भी भूल एवं पूजा से संबंधित त्रुटि हेतु भगवान से प्रार्थना की जाती है।

करवा चौथ व्रत कथा

इस व्रत के संबंध में कई कथाये है जिसमें कुछ एक अधिक प्रचलित एवं संक्षिप्त कथा इस प्रकार है। एक साहूकार के सात बेटे और उनकी बहन जिसका नाम करवा था। उससे सभी भाई बहुत ही स्नेह रखते थे। इसी स्नेह वश उसके एक छोटे भाई ने व्रत काल में उसे प्यास से व्याकुल देखकर चन्द्रमा के उदित होने की झूठी खबर देता है। यहाँ तक कि किसी पेड़ में दीप को रखकर बहन को कहता है। कि करक चौथ का चन्द्रमा उदित हो गया है। जिससे वह खुशी के मारे उस दीप को ही चन्द्रमा समझ लेती है। और जब खाने का ग्रास मुंह में लेती है तो उसे कई प्रकार के अशुभ संकेत प्राप्त होते हैं। अर्थात् इस व्रत के खण्डन से उत्पन्न पाप के कारण उसके पति की मृत्यु की खबर उसे प्राप्त होती है। जिससे सारा सच उसके सामने आ जाता है। तथा पूरी भक्ति निष्ठा रखने वाली उस बहन ने पुनः उसी व्रत का अनुष्ठान भक्ति पूर्वक करके अपने पति को व्रत के प्रभाव से पुनः जीवत कर लेती है। आदि कथायें हैं।

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