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श्री वल्लभाचार्य जयंती

Published On : April 3, 2024  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

श्री वल्लभाचार्य जयंती

वल्लभाचार्य जयंती: यह भक्ति युगीन काल के आधार स्तम्भ एवं भगवान कृष्ण के परम भक्त थे। यह सगुण ईश्वर के उपासक एवं उसके प्रचारक थे। प्रति वर्ष इसकी जयन्ती को बड़े उत्सव से धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इनका जन्म संवत 1530 में वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि में दक्षिण भारत मे हुआ था। यह वेद शास्त्रों के ज्ञाता एवं विष्णूस्वामी संप्रदाय की परंपरा में भक्ति पथ को स्थापित करने वाले थे। इनके जन्म के समय में देश एवं समाज में तरह-तरह की बुराई एवं कुरीतियां व्याप्त थी। वह समय ऐसा था जब धार्मिक क्षेत्रों में सगुण ईश्वर की भक्ति एवं उपासना के प्रचार एवं प्रसार का संकट था। अतः जन भावना को समझते हुये इन्होनें में कृष्ण की सगुण भक्ति को प्रचारित एवं प्रसारित किया था। हालांकि यह अपने बाल्यकाल्य से ही बड़े ही तेजस्वी एवं ओजस्वी थे। इनके माता एवं पिता आंध्रप्रदेश के कांकरवाड़ नामक स्थान पर रहने वाले थे। यह भारद्वाज गोत्र में जन्म लेने वाले एक तैलंग ब्राह्मण थे। पिता स्व. लक्ष्मण भट्ट दीक्षित एक पहुंचे हुये विद्वान एवं बड़े ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। जिससे बालक श्री वल्लाभाचार्य की शिक्षा दीक्षा एवं ज्ञान भी बड़ा प्रखर एवं अद्वितीय हुआ था। इन्हें साक्षात् वैश्वानर अग्नि का रूप भी माना जाता है। जनश्रुती के अनुसार इनका जन्म किसी घने एवं विरान जंगल में हुआ। जन्म के समय बालक की किसी भी प्रकार कि क्रिया कलापों को न भापने के कारण इनकी माता ने इनके पिता को मरे हुये बच्चें के जन्म का संदेश दिया। जिससे पिता ने किसी वस्त्र में इन्हें लपेट करके शमी वृक्ष के किसी गढ्ढे में रख दिया। और अपने नगर को चले गये। किन्तु सुबह होने पर वह पुनः उसी स्थान पर आये तो देखा कि अग्नि के घेरे के अन्दर वह बालक खेल रहा है। जिससे उन्हें बहुत ही आश्चर्य हुआ तथा वह खुशी से उसे उठा लिया तथा उनकी माता ने उन्हें स्तनपान कराया। तथा जातकर्म एवं नामकरण संस्कार किया गया। और उसका नाम वल्लभ रख दिया गया। जिससे आगे चलकर वही बालक वल्लभाचार्य के रूप में प्रसिद्ध हुआ। यानी बालक के शिक्षा एवं दीक्षा का पूरा ध्यान उनके पिता लक्ष्मण भट्ट ने दिया। बालक का बचपना धर्म नगरी काशी में बीता। तथा पिता ने उसे कृष्ण मंत्र जपने की दीक्षा भी दी थी।

वल्लाभाचार्य की शिक्षा एवं दीक्षा

अपने शिक्षण काल में कुशाग्र बुद्धि के धनी बालक वल्लाभाचार्य ने वेद एवं वेदांगों में अतिशीघ्र पारंगत हो गये। तथा काशी के विद्वानों के मध्य बड़ा सम्मानित स्थान प्राप्त किया था। वह वैष्णव धर्म के अतिरिक्त जैन, एवं बौद्ध तथा शैव और शाक्त धर्म के भी बड़े ही मर्मज्ञ विद्वान थे। वह सुख समृद्ध एवं सम्पन्न घर के सदस्य थे। तथा उनके बडे़ भाई का नाम रामकृष्ण भट्ट था। यानी तीन भाई एवं दो बहिनें थी। यह बड़े ही तपस्वी एवं धार्मिक पुरूष थे। अपने तप बल को सिद्धि करते हुये यह कई प्रकार के सिद्धियों के स्वामी बन गये थे।

वल्लाभाचार्य जी का सन्यास एवं अन्य जानकारियां

जीवन की शुरूआत ही धार्मिक तानेबाने एवं शुभ धार्मिक संस्कारों में हुई थी। जिससे वह एक नियत समय में संन्यासी हो गये तथा बद्रीनारायण आदि अनेकों तीर्थों का भ्रमण एवं देशाटन किया था। उनके भाई भी बड़े ही पहुंचे हुये विद्ववान थे। वल्लाभार्य को संन्यास के सयम में केशवाचार्य या फिर केशवपुरी कहा जाता था। अर्थात् वल्लाभाचार्य जी देश एवं समाज तथा धर्म के प्रचार प्रसार एवं समाज के सुधारों में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले थे। उनके प्रयासों एवं योगदानों को आज भी यादि किया जाता है। श्री वल्लाभाचार्य की मृत्यु संवत 1546 की चैत्र कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि में हुई थी, श्रीवल्लाभाचार्य जी का मत है कि ब्रह्म एवं जगत तथा जीव यह परम पिता ब्रह्मा के स्वरूप में वर्णित है। तथा भगवान श्री कृष्ण को ही परब्रह्म एवं परमानन्द कहा गया है। श्री वल्लाभाचार्य ने कई धार्मिक ग्रंथों एवं स्त्रोतों की रचना की है।  जिसमें यमुनाष्टक सहित 16 ग्रंथों एवं स्त्रोतों का वर्णन किया गया है। अर्थात् श्री वल्लाभाचार्य की यह जयन्ती अत्यंत उपयोगी एवं कल्याणप्रद है। जो भक्ति मार्ग को प्रशस्त कराने वाली है। तथा भटकते हुये मानव जीवन के लिये एक विशेष संदेश भी है। क्योंकि इन्होंने के ऐसे ग्रथों एवं स्रोतों की रचना की जो मानव के लिये परम हितैशी है। जिनके अनुसार व्यक्ति अपने जीवन में सही लक्ष्य को पा सकते हैं।

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