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माँ महागौरी – नवदुर्गा की आठवीं शक्ति

Published On : April 4, 2017  |  Author : Astrologer Pt Umesh Chandra Pant

अष्टम देवी महागौरी की उत्पत्ति

भूमण्डल में दैत्यों का उत्पात जब इस कदर बढ़ गया कि मानव क्या? देवता भी अपने यज्ञ भाग नहीं पाते थे और उनके भी स्थान राक्षसों द्वारा छीन लिए गए। इस अनीत व उत्पात को समाप्त करने के लिए देव समूहों ने अपने परम तेज से माँ दुर्गा को इस जगत में प्रकट किया था। जो देवासुर संग्राम में नव दिनों तक महिषासुरादि राक्षसों को विविध रूपो में प्रकट होकर संहार करती रही। जिससे सभी भूमण्डल वासियों का कल्याण हुआ और देवताओं को उनका स्थान व यज्ञ भाग प्राप्त हुआ। माँ दुर्गा भवानी के आठवे विग्रह को माँ गौरी के रूप में जाना व पूजा जाता है। यह आठवें दिन यानी अष्टमी को महागौरी के रूप में प्रकट हुई हैं। यह चंद्र और कुन्द के फूल की तरह गौर रंग में प्रतीत होती हैं। इन्होंने महान तपस्या करके इस गौरवर्ण को प्राप्त किया था, जिसके कारण इन्हें महागौरी देवी कहा जाता है। माँ चार भुजी है जिसमें दाहिने तरफ के ऊपर वाले हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए है तथा नीचे वाले हाथ में वरदायनी मुद्रा है। बांये तरफ वाले ऊपर के हाथ में अभय मुद्रा को धारण किए है। तथा नीचे वाले हाथ में डमरू को धारण किए है। यह वृषभारूढ़ है अर्थात् इनका वाहन नन्दी बैल है जो अतिपराक्रमी और धर्म भी प्रतीक है। माँ गौरी ने कठिन तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था। जिससे इन्हें शिवा भवानी भी कहा जाता है। इनकी आराधना से भक्तों को मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं। तथा रोग, भय,पीड़ा आदि का नाश हो जाता है। और श्रद्धालु भक्त का सतत् कल्याण हो रहता है।

महागौरी की पूजा का विधान

श्री माँ आदि शक्ति दुर्गा के इस आठवे विग्रह को महागौरी के नाम से इस जगत में जाना जाता है। इनकी माँ महागौरी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन करने का विधान होता है। इनकी पूजा अर्चना से पूर्व जन्म के संचित पाप भी धुल जाते हैं। अर्थात् अपने कल्याण हेतु व्यक्ति को इनकी पूजा करनी चाहिए, पूजा का विधान पूर्ववत ही हैं। माँ महागौरी की पूजा में आठवें दिन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा अर्थात् पति की कुशलता व परिवार की रक्षा के लिए चुनरी या साड़ी सहित विभिन्न प्रकार की सुहाग की वस्तुओं को चढ़ाती है। जिससे उन्हें सुहाग प्राप्ति की होती और जो सुगावती हैं उनके सुहाग की रक्षा होती रहती है। घर परिवार में सुख शांति होती है।

माँ महागौरी की कथा

माँ महागौरी प्रत्येक भक्त का सर्वविधि कल्याण करने वाली है। इनके विषय में ऐसी कथा प्रचलित है- कि यह आदि देव महादेव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए जंगल में रहकर विभिन्न प्रकार के कष्टों को सहते हुए भगवान महादेव अर्थात् शिव जी को प्राप्त करने के लिए कठोर तप करती हैं। जिससे भगवान शिव उनसे प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने के लिए कहते है, तो उन्होंने भगवान शिव को ही पति के रूप मांगा। भगवान उन्हें एवमस्तु ऐसा ही होगा कहा। किन्तु देवी के कठोर तप व ध्यान में लीन रहने के कारण इनका शरीर अत्यंत जीर्ण व कमजोर होकर काले रंग का हो गया। जिससे भगवान शिव ने अपने कमण्ल से जल निकाल कर देवी भगवती के ऊपर छिड़क दिया जिसके प्रभाव व शिव की इच्छा से देवी जी पूरा शरीर सुन्दर गौरवर्ण का हो गया। तभी से इनका नाम महागौरी हो गया है। यह भक्तों की परम आश्रम दात्री और कल्याण करने वाली है।

दूसरी कथा में इस प्रकार वर्णन है, कि माँ देवी पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तक किया। जिससे के फलस्वरूप शिव इन्हें पति के रूप में प्राप्त होते हैं। एक बार की बात है कि माता को बातों ही बातों में शिव जी कुछ कह देते हैं। जिसे वह मन से ले लेती है और कई वर्षों तक तपस्या में लीन रहती है। जब एक लंबा अंतराल गुजर जाता है तो शिव जी उन्हें स्वतः खोजने के लिए निकलते है और ढूढ़ते-ढूढ़ते वहीं पहुंच जाते है जहाँ पार्वती तप कर रही थी। तपस्या करते हुए माँ का शरीर अति तेज से युक्त हो जाता है  जिससे शिव जी उन्हें गौरवर्ण होने का वरदान देते है। तभी से इन्हें माँ महागौरी के रूप में जाना जाने लगा। इनकी कांति कुन्द इन्दु के समान है। माँ का यह स्वरूप अति कल्याण प्रद है।

महागौरी के मंत्र

माँ माहगौरी के अनेक मत्र हैं जिसमें प्रमुख रूप से यह मंत्र है जिससे माँ की कृपा प्राप्त होती है। और भय, दोष सामाप्त होते है। तथा आश्रय हीन को आश्रय व घर प्राप्त होता है। तथा सौभाग्यकांक्षी स्त्रियों को मनवांछित पति की प्राप्ति होती है। इस मंत्र को ऋषियों व विद्वानों द्वारा जपा जाता है।

सर्वमंगलमगंले शिवे सर्वार्थसाधिके ।  शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते।।

महागौरी महात्म्य

माँ महागौरी का ध्यान, आवाहन, पूजन, स्मरण श्रद्धालु भक्तों का सभी तरह से कल्याण करता है। जिससे उन्हें जीवन पथ पर दुःख व पीड़ाओं से मुक्ति प्राप्त होती है। जीवन धन्य हो जाता है। अतः प्रत्यन्न पूर्वक सभी स्त्री पुरूषों को माँ जगत जननी की आराधना करनी चाहिए। क्योकि यह व्यक्ति को सद्बुद्धि, ज्ञान, धन, पुत्र व यश को देने वाली हैं।

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